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१३. जीर्ण-शीर्ण गुम्फा : (राधाकुण्ड से आगे)
राधा कुण्ड से थोड़ा आगे जाने पर एक भग्न गुंफा दृष्टिगोचर होती है। इस गुम्फा के आन्तरिक भाग में एक बृहद अर्थात-बहुत बड़ा (लम्बा-चौड़ा) प्रकोष्ठ है। इस में दो कोठियाँ हैं और इसके सामने बेंचों से युक्त कमरा है। उक्त दोनों कोठियाँ आकार में निश्चित रूप से विस्तृत हैं। उनकी छत, विभाजक दीवार सामने का खुला भाग और मध्यवर्ती दीवार सहित अब सब नष्ट हो गया है। सामने बाला बरामदा भी समाप्त हो गया है। बरामदा की छत को सहारा देने वाले एक साथ चार स्तम्भ और पार्श्ववर्ती घनाकृति वाले स्तम्भ थे। को ठियों के फर्श पीछे से उठे हुए है और छत समतल है। १४. एकादशी गुम्फा :
यह बहुत बड़ा आवासीय कमरा वाली गुंफा है। जिसकी छत का वहिर्विष्ठ भाग के अलवा खम्भे सहित बाहारी भाग नष्ट हो गया है। छत सामान्म और फर्श पीछे से उठा हुआ था। १५. गुप्तशंगा के सन्निकट गुम्फा :
पहाड़ी के वृत्ताकार के रूप में घूमने पर कुछ दूर चलने पर पश्चिम की ओर पहाड़ी की तलहटी के सनिकट दो संकरी चट्टानों के मध्य में एक कुण्ड है। इस में पानी के आने का रास्ता दृष्टिगोचर नहीं होता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि दोनो हाथों से ताली बजाने पर पानी स्वत: निकलने लगता है। यहाँ एक छोटी गुम्फा विद्यमान है। यह सामने से खुली है। गुम्फा का पश्चिमी मुखी कमरे का फर्स पीछे से उठा हुआ है एवं तकिया के समान है। इसकी छत समतल है। यह गुम्फा जंगली जानवरों के रहने का अड्डा बन गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ साधक ध्यान-साधना करते थे। उदयगिरि और खण्डगिरि की गुफाओं में जैनधर्म के तत्त्व :
उदयगिरि और खण्डगिरि युग्भ पहाड़ियों पर गुफाओं के निर्माण का उद्देश्य जैन श्रमणों को सुख-सुविधा पहुँचाना था। जैन अर्हत अर्थात् श्रमण बर्षावास में एक स्थान
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