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सुसज्जित हैं । अन्तित तोरण का शीर्ष भाग भी वत्स और नन्दिपद चिन्हों से युक्त है। स्तम्भों के पाद प्रदेश में पूर्ण कुम्भ, शिखर पर उल्टा कमल और उसके उपर तीन फन वाले सर्प चित्रित हैं । तोरण के शीर्षांगों पर उक्त सर्पों की पूंछे लिपटी हुई हैं। वे सर्प तोरण को घेरे हुए हैं। घनाकार स्थूल स्तम्भों के मध्य भाग विभिन्न प्रकार के पंख वाले जानवरों से उत्कीर्णित हैं।
गुम्फा के तोरणों पर सुक्ष्म कला शोभायमान है। प्रथम तोरण पर पुष्पमाला दूसरे तोरण पर सिंह तीसरे तोरण पर हाथी और चौथे पर नीलोत्पल लेकर उडते हुए राजहंसों की पंक्तियाँ चित्रित हैं ।
तोरणों के आन्तरिक भागों में ऐतिहासिक और धार्मिक चित्रांकित हैं । जो निम्नांकित है: चतुर्दन्ती अर्थात् - चार दांत वाला विशालकाय राजसी हाथी दो हाथिनियों के मध्य में खड़ा है। हथिनियाँ कमल का फूल अपनी-अपनी सूंढ में लिए हुए उसकी पूजा करती हुई प्रतीत होती हैं। उक्त हाथी गंभीर मुद्रा में है। जैन धर्म की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण हैं । तीर्थंकरों की माता सर्वप्रथम इसी प्रकार के हाथी को स्वप्न में देखती हैं।
दूसरे तोरण में चारघोडों वाले रथ पर एक व्यक्ति बैठा हुआ गतिशील हैं। उसके दोनों ओर दो देवियाँ भी वैठी हुई दृष्टिगोचर होती हैं। उक्त व्यक्ति के उपर राजछत्र भी है । कुछ विद्वान उस व्यक्ति
को दो हाथों वाला सूर्य मानते
हैं। उक्त दोनों महिलायें उस
सूर्य की ऊषस् और प्रत्यूष
नामक पत्नियाँ हैं । आकाश
में सूर्य, चन्द्रमा एवं तारिकाऐं हैं। रथ की गति के साथ एक
दुर्वल शरीर वाला मनुष्य दौड़ता हुआ दृष्टिगोचर होता
है। उसके बांये हाथ में
पानपात्र और दाहिने हाथ में दूसरे तोरण पर अंकित चार घोड़े वाले रथ पर दे देवियों के
फयराती हुई पताका है।
मध्य में बैठा व्यक्ति
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