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इस गुम्फा में एक दीर्घाकार कमरा है। इस कमरे के सामने बेंच युक्त बरामदा है। प्रकोष्ठ की छत समतल और फर्श पीछो से उठा है। इस गुम्फा के गर्भ ग्रह (कमरे) के अन्दर के बगल में बने तथा खुले हुए दो दरवाजों अर्थात् निकास द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। इन दरवाजों में किवाड़ों के स्थान पर पत्थर से निर्मित चौखट और स्तम्भ हैं । घनाकार स्तम्भों के शीर्ष भाग विभिन्न प्रकार के युगल रूप में स्थित जानवरों से अलंकृत है। स्तम्भों के ऊपरी भाग में हुए अर्धवृताकार तोरण मकर के मुख से निकलने वाली माधवी लताओं से युक्त एकान्तर कमलों और फलो से युक्त लताओं से खूबसूरत रूप से चित्रित हैं। तोरणों के शीर्ष भाग त्रिभुजाकार हैं। जो चोचों मे फूल दबाकर (पकड) उड़ते हुए तोतों से युक्त है। तोरणों और पार्शवी दीवाल का मध्यवर्ती स्थान ढोलाकार और मेहरानी छत का नमूना प्रतीत होता है। इसे कलसियों की कतारों से युक्त शीर्ष भाग वाले ब्रेकेट सहारा दिये हुए हैं।
बरामदा की छत को दो खम्भे और पार्श्वस्थ घनाकार स्तम्भ सहारा दिये हुए हैं। खम्भों और घनाकार स्तभ्मों के ब्रेकेटें कमलों माधवी लताओं और गुच्छों से उत्कीर्णित हैं। बरामदा के सामने स्तम्भों के बगल में धोती पहने हुए और चादरं धारण किए हुए अगल-बगल में इस गुम्फा की रक्षा करते हुए दो चौकीदार खड़े हुए हैं। इनके हाथों में तलवार है। दूषित प्रवृत्ति के लोगों ने इनके सिर काट कर क्षतिग्रस्त कर दिया है। दरवाजों के मार्ग के दो तोरणों के बीच में निन्मांकित लघु शिलालेख उपलब्ध है।
पादमूलिकस कुसुमस लेणं()नि अर्थात पादमूलिक कुसुम की गुम्फा। इस गुम्फा का निर्माण ई.पू. प्रथम शताब्दी में होना चाहिए। तातोवागुफानं-२
ई.पूर्व प्रथम शताब्दी तथा कलिंग नरेश खारवेल के समय में निर्मित यह गुंफा पहली गुंफा के ऊपरी विस्तृत सतह पर स्थित है। प्रथम गुम्फा के दाहिनी ओर निर्मित सीढियों द्वारा उक्त गुम्फा तक पहुँचा जा सकता है। इस की सजावट विसद, जटिल और श्रम साध्य है। इस गुम्फा में एक दीर्घाकार प्रकोष्ठ है। इस प्रकोष्ठ में
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