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जैन धर्म और जीवन-मूल्य
होते देख उनका अनुकरण करने लगे। इससे सर्वसाधारण तक अनायास ही जैन धर्म प्रचारित हो गया । दूसरे, जैन संस्कृति की अनेक बातें वैदिक साहित्य व समाज में स्वीकार कर ली गई । इस सहिष्णुता के वातावरण में जैनाचार्यों के प्रयत्नों और अनेक राजाओं के सहयोग से जैन धर्मं भारत के विभिन्न प्रान्तों में क्रमशः विकसित होता रहा ।
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इस प्रकार मानव सभ्यता के साथ शील होती रही । ऋषभदेव के समय से भारतीय संस्कृति को करुणा और साधना का महावीर द्वारा ईसा पूर्व छठी शती में सुव्यवस्थित स्वरूप पाकर उनके अनुयायियों द्वारा देशव्यापी बन गयी । उसने समय-समय पर उत्तर और दक्षिण भारत के
उदित होकर जैन संस्कृति निरन्तर गतिजनसाधारण को सुसंस्कृत बनाती हुई, अन्तिम तीर्थङ्कर
सन्देश देती हुई,
विभिन्न राजवंशों एवं बहुजन समाज को प्रभावित एवं विशेषताओं के फलस्वरूप वह अविच्छिन्न अपना अस्तित्व सुरक्षित रखे हुए है ।
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किया तथा अपने प्रान्तरिक गुणों धारावाही रूप से आज तक देश में
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