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________________ कुम्भाकालीन मेवाड़ में जैन धर्म 113 शताब्दी में चित्रित कल्पसूत्र की भी कई प्रतियां राजस्थान से प्राप्त होती हैं । इन चित्रित प्रतियों से राजस्थान शैली की नई विधा ने चित्रकला के क्षेत्र में जन्म लिया है। मेवाड़ में 15 वीं शताब्दी की जैन चित्रकला का प्रतिनिधि चित्रित ग्रन्थ हीरानन्द मुनीन्द्र द्वारा लिखित 'सुपासनाहचरिय' है। यह ग्रन्थ महाराणा कुम्भा के पिता मोकल के समय में सं. 1479-80 में देलवाड़ा) (मेवाड़ में लिखा गया था। इसमें कुल 37 चित्र हैं। इस प्रति के चित्र इतने आकर्षक हैं कि एकदम ताजे लगते हैं । 79 इस ग्रन्थ के चित्रों का विशेष परिचय मेवाड की चित्रकला को रेखांकित करता है ।80 इसके अतिरिक्त 'श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र' की सचित्र प्रति भी प्राप्त है, जो इस युग की जैन चित्रकला का प्रतिनिधित्व करती हैं 181 सोमसौभाग्य काव्य के उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि उस काल के श्रेष्टियों के भवनों की भित्तियां चित्रों से अलंकृत रहती थी 182 अपभ्रश के कई ग्रन्थों में भी इस प्रकार की सामग्री प्राप्त है। महाराणा कुम्भा कालीन मेवाड़ में शासक एवं जैन श्रावकों का इतना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध था कि जैन मन्दिरों में हिन्दू धर्म की मूर्तियां भी कुछ स्थानों पर स्थापित की गयी थीं । वि सं. 1503, 1504 एवं 1 521 के अभिलेखों से ज्ञात होगा कि डूगरपुर क्षेत्र में किसी हंमड़ जन परिवार ने त्रिविक्रम एवं नारायण की वैष्णव मूर्तियों की स्थापना में सहयोग किया था । जैसलमेर के वि. सं. 1581 के शिलालेख से भी यह ज्ञात होता है कि सखवाल जैन परिवार ने जैन मन्दिर में दशावतार एवं लक्ष्मीनारायण की मूतियां स्थापित की थीं। यह धार्मिक उदारता तत्कालीन कला की समृद्धि की देन थी। श्रीमाल जीवराज ने वि. सं. 1525 में जावर से अहमदाबाद की यात्रा की थी, वहां के विष्ण मन्दिर के दर्शन के लिए 183 कला की समृद्धि और धार्मिक भावना के कारण इस प्रकार की कई संघ-यात्रामों के किए जाने के उल्लेख इस युग के स्रोतों से प्राप्त होते हैं 184 जैन समाज : 15 वों शताब्दी में मेवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में जैन समाज की सम्मानजनक स्थिति थी । यही कारण है कि जैन श्रेष्ठियों को राज्य-व्यवस्था में उच्च पद प्राप्त थे। मास्टर बलवन्तसिंह जी मेहता का यह कथन ठीक प्रतीत होता है कि मेवाड़ के राजारों की प्रात्मा शैव थी तो देह जैन थी। 85 श्वेताम्बर आचार्यों ने मेवाड़ को एवं दिगम्बर आचार्यों ने बागड़ क्षेत्र को अपने उपदेशों से धीरे-धीरे अहिंसक बना दिया था। इसी अहिंसक वातावरण में ही मेवाड़ साहित्य एवं कला का भण्डार बन सका है। इस युग में जैन श्रेष्ठियों ने समाज में अपनी अच्छी प्रतिष्ठा बना रखी थी। महाराणा खेता के समय में रामदेव नवलखा जनप्रिय मन्त्री था। उसके परिवार ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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