SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुम्भाकालीन मेवाड़ में जैनधर्म 111 है । इस मंदिर में अष्टभुजी विष्णु एवं शिवलिंग की प्रतिमाएं होने से यह मंदिर धार्मिक उदारता का एक उदाहरण है। सत-बीस-डयोढ़ी मंदिर69 ---शैलीगत विशेषताओं के आधार पर इसका निर्माण काल 15 वीं शताब्दी माना जाता है। इस मंदिर के मंडप में वि. सं. 1464 का लेख प्राप्त हुआ है तथा शान्तिनाथ की प्रतिमा पर वि. सं. 1512 का शिलालेख भी मिला है। इससे ज्ञात होता है कि इसके निर्माण में भण्डारी श्रेष्ठि ने महत्त्वपूर्ण योग दिया था। इस मंदिर में कई देवीदेवताओं की भी मूर्तियां हैं । महावीर जैन मंदिर70- इस मंदिर का श्रेष्ठि गुणराज के पुत्रों ने जीर्णोद्धार कराया था। वि. सं. 1485-1495 के बीच इसका कार्य पूरा हुआ था। इसकी प्रतिष्ठा सोमसुन्दरसूरि ने करायी थी। अचलगढ़ (प्राब) के जैन मंदिर 71--महाराणा कुम्मा के समय में प्राबू पर्वत पर अचलगढ़ में जैन मंदिर का निर्माण हुअा था । वि. सं. 1516 में खरतरगच्छ के श्रेष्ठि मंडलिक ने पार्श्वनाथ का मंदिर यहाँ बनवाया था। इसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य जिन चन्द्रसूरि ने की थी । वि सं. 1518 में अचलगढ़ के चौमुखा मंदिर में आदि नाथ की मति कुम्भलगढ़ से लाकर स्थापित की गयी थी। कुम्भलगढ़ के जैन मंदिर-2 -- महाराणा कुम्भा के काल में कुम्भलगढ़ प्रसिद्ध जैन केन्द्र था। इस समय यहाँ जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार एव निर्माण भी कराया गया था। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-- पार्श्वनाथ मंदिर--यहाँ की पार्श्वनाथ की मूर्ति पर वि. सं. 1508 वैशाख वदि 13 का लेख उत्कीर्ण हैं। इससे ज्ञात होता है कि नरसिंह पोरवाल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर की अन्य मतियों पर भी वि. सं. 1513 के लेख अंकित हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि रत्न शेखरसरि ने इनकी प्रतिष्ठा करायी थी। बावन जैन मदिर--इस मंदिर के प्रांगण में एक विशाल मंदिर है। उसके चारों तरफ 52 छोटे मदिर हैं । उनमें से 40 में अब मूर्तियां नहीं है । मुख्य मन्दिर के पीछे स्तम्भ लेख है, जिससे ज्ञात होता है कि इस मदिर का निर्माण सं. 1521 में सूत्रधार नरसी गोदा ने किया था । गोलेरा जैन मंदिर--यह गोलाका राकृति में निर्मित है। इस मन्दिर में मूर्तियों का अलंकरण भित्तियों पर उपलब्ध है। कला की दृष्टि से इसे कुम्भाकालीन मन्दिर माना जा सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy