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________________ महायानी आदर्श और जैनधर्म 99 अन्तरात्मा और परमात्मा। इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है । बौद्धधर्म के सिद्धान्तों एव प्रवृत्तियों के साथ जैनधर्म में प्रचलित कुछ समानतानों का यहाँ संकेत मात्र किया जा सका है। इसके अतिरिक्त भी अन्य कई बातों में बौद्ध धर्म एव जैन धर्म में समानता है। विद्वानों ने इस विषय में कुछ अध्ययन भी प्रस्तुत किये हैं । 20किन्त यदि ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाय तो श्रमण परम्परा के इन दोनों धर्मों के सम्बन्ध में और भी मनोरंजक और आधारभूत तथ्य प्राप्त किये जा सकते हैं । विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट होना चाहिये । सन्दर्भ 1. डा. हरदयाल : द बोधिसत्व डाक्ट्रिन इन बुद्धिस्ट संस्कृत लिटरेचर, लंदन, 1932, पृ. 30-49 2. प्रेमी, नाथुराम : जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, 1958, पृ. 351 3. घोष, अमलानन्द : जैन कला एवं स्थापत्य खण्ड I, दिल्ली, 1975, प्रस्ताविक, पृ 4 4. सुजुकी : प्राउट लाइन्स आफ महायान बुद्धिज्म, पृ. 62-65 5. आचारांग सूत्र, 1-4--1 तथागतं भिक्खवे सम्मासम्बुद्ध द्वबितकका बहुलं समुदाचरन्ति खेमो च वित क्को पविवेको इतिवृत्तक, 2-2-9 7. उपाध्याय, भरतसिंह : बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, भाग 1, कलकत्ता, 1957, पृ. 595-96 जैन, सागरमल : जैन बौद्ध और गीता का समाज-दर्शन, जयपुर, 1982, पृ 17-21 9. सर्वोदय दर्शन, आमुख, पृ. 6 10. अंगुत्तरनिकाय, 3-71 तथा धम्मपद, गा. 165-66 11. दीघनिकाय, पृ. 24-28 12. यथा अहं तथा एते यथा एते तथा अहं । अत्तानं उपमं कत्तवा न हनेय्य न धातये ।। त.3-37-27 13. जह ते ण पियं दुक्खं तहेव तेसि पि जाण जीवारसं । एवं णच्चा अप्पोवमिवो जीवेसु होदि सदा ।। -भगवती-पाराधना, गा. 777 14. जेणरागा विरज्जेज्ज जेण सेयेसु रज्जदि । जेण मित्ती पहावेज्ज तं गाणं जिण-सासणें ।। -समणसुस्त गा. 86-88 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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