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________________ तेरापंथ का पालन-पोषण व क्रमिक विकासकाल श्री एकलिंगजी श्री बाणनाथजी श्री नाथजी "स्वस्ति श्री साध भारमलजी तेरपंथी साध श्री राणा भीमसिंह री विनती • मालूम होवे, कृपा कर अठे पधारोगा को दुष्ट दुष्टाणों कीधो, जी सामू नहीं देखोगा, या सामू व नगर में प्रजा है, ज्योरी दया कर जेज नहीं करोगा, वती कांई लिखु और समाचार शाह शिवलाल का लख्या जाणोगा, संवत् १८७५ वर्षे असाढ वदि ३ शुके । ” आचार्यप्रवर को यह पत्र सुनाया व उदयपुर पधारने का निवेदन किया गया - पर वे इतने निष्पृह थे कि उन्होंने कहा, 'अब उस पथरीली धरती पर पैर घिसने कौन जाए ? " महाराणा को यह ज्ञात हुआ तो उन्हें बहुत निराशा हुई और चातुर्मास उतरने के बाद उन्होंने पुनः एक पत्र आपकी सेवा में भिजवाया जो इस प्रकार है श्री एकलिंगजी श्री बाणनाथजी श्री नाथजी "स्वस्ति श्री तेरापंथी साधु श्री भारमलजी सूं म्हारी दण्डौत बंचे, अप्रंच आप अठे पधारसी, जमा खातर सुं, आगे ही रुक्कों दियो हो सो अबे बेगा पधारोगा, संवत् १८७६ वर्ष पोह वदि ११, बेगा आवोगा, श्रीजी रो राज है, सो सारों को सीर है, जी थी; संदेह कोहि बी नहीं लावोगा ।" ३६ इस पर वृद्धावस्था व शारीरिक दुर्बलता के कारण आचार्यप्रवर तो उदयपुर नहीं गये पर उन्होंने मुनिश्री हेमराजजी, रायचंदजी, जीतमलजी आदि तेरह संतों को भेजा, जिन्होंने एक माह प्रवास किया जिसमें महाराणाजी का बहुत सहयोग रहा । उन्होंने अनेक बार दर्शन किए। संवत् १८७७ का चातुर्मास भी श्रीहेमराजजी स्वामी ने उदयपुर में किया। इस चातुर्मास में बहुत उपकार हुआ । तब से उदयपुर का भी तेरापंथ से स्थायी रूप से सम्बन्ध हो गया । Jain Education International gatari - मनोनयन व स्वर्ग-प्रयाण आचार्य-प्रवर ने संवत् १८७७ का चातुर्मास नाथद्वारा में किया व बाद में कांकरोली होते हुए राजनगर पधारे। मुनिश्री हेमराजजी ने वहां दर्शन किए, अनेक साधु-साध्वी व सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं का गुरु दर्शन हेतु वहां आना हुआ। उदर वेदना से आचार्य प्रवर अस्वस्थ हो गए । उन्होंने मुनिश्री खेतसीजी व मुनि श्री हेमराजजी से परामर्श करके संवत् १८७७ के बैसाख वदि ६ गुरुवार को लेख- पत्र लिखकर श्री रायचंदजी स्वामी को युवाचार्य घोषित किया। पहले खेतसीजी . स्वामी का भी लेखपत्र में नाम लिख दिया गया था पर यह आगे के लिए ठीक. • परम्परा न होने के कारण खेतसीजी स्वामी का नाम हटा दिया गया। इसके बाद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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