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________________ तेरापंथ का उदयकाल ३१ समय उन्होंने दीवान फतेचन्दजी को जानकारी दी व स्वामीजी की सत्यक्रांति के साथ जुड़े। स्वामीजी के दयावान सिद्धान्त को उन्होंने बारीकी से समझा। जैनधर्म के प्रति श्रद्धालु बनने से ब्राह्मण समाज में उनके प्रति रोष रहा व उनको पुत्र का विवाह अन्यत्र करना पड़ा। वे सेठ के यहां नौकरी करते थे व बाहर जाते रहते । संवत् १८५१ में, उन्होंने मांडवी बंदर (कच्छ) के तत्त्वज्ञ श्रावक टीकम डोसी से चर्चा-वार्ता कर उसे स्वामीजी की मान्यताएं बताईं व उनकी प्रेरणा से टीकम डोसी ने संवत् १८५३ में मारवाड़ आकर स्वामीजी के दर्शन किए व गुरु-धारणा की। टीकम डोसी स्वामीजी की रचनाओं से बहुत प्रभावित हुए व अंत में अनशन कर स्वर्गवासी हुए। २. श्रावक शोभजी आपका जन्म केलवा के कोठारी (चोरड़िया) परिवार में हुआ व आपके पिता नेतसीजी ने संवत् १८१७ के केलवा चातुर्मास में स्वामीजी की श्रद्धा ग्रहण की व उनके संस्कार आपमें भी आए । आप धार्मिक व सामाजिक दोनों कार्यों में निपुण थे व केलवा ठिकाने के कई वर्ष प्रधान रहे। बाद में ठाकुर से अकारण मनोमालिन्य होने के कारण, आप नाथद्वारा आ गये और वहां सपरिवार रहने लगे। केलवा ठाकुर के दबाव से नाथद्वारा के गुसाईंजी ने आप पर गलत आरोप लगाकर कारावास में डाल दिया व पैरों में लोहे की बेड़ियां डाल दीं। ऐसी विपदा के समय वे गुरु की शरण में जाना श्रेयस्कर समझ कर, तन्मयता से गाने लगे "मौटो फंद इण जीवरे, कनक कामणी दोय, निकल सकू नहीं, उलझ रहयो हूं, दरशण पड़ियो बिछोय गुरुजी रा दर्शन किण विध होय, स्वामीजी सुं मिलणों किण विध होय....." संयोग की बात, स्वामीजी उन दिनों आस-पास विचर रहे थे। पता लगने पर वे नाथद्वारा आए व शोभजी को दर्शन देने कारागृह गये । उन्हें तन्मयता से गाते देखकर स्वामीजी ने आवाज दी, आवाज के साथ ही शोभजी अपने गुरु के दर्शन करने खड़े हुए। पैरों की लोहे की बेड़ियां टूटकर अलग पड़ गईं। एक अनहोनी घटना घट गई, गुसाईंजी को सूचना मिलने पर उन्होंने आपको तुरन्त मुक्त कर दिया व खूब सम्मान दिया। ___ शोभजी जैसे श्रद्धाशील थे । वैसे कर्मठ भी थे। उदयपुर के प्रसिद्ध श्रावक केसरजी भंडारी को उन्होंने ही तेरापंथ के प्रति आस्थावान बनाया था। शोभजी की ३० गीतिकाओं की 'पूजगुणी' काव्य-रचना बड़ा प्रेरक ग्रन्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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