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________________ तेरापंथ का उदयकाल २१: वार्ताओं का विशद विवरण उनके अंतेवासी विद्वान शिष्य हेमराजजी स्वामी द्वारा श्रीमद् जयाचार्य को लिखवाए गए संस्मरणों में, जिसका संकलन 'भिक्षु दृष्टांत' नामक ग्रंथ में हुआ है, मिलता है । यह ग्रन्थ इतना रोचक व सरस है कि उसके पढ़ने में स्वामीजी से साक्षात्कार जैसा अनुभव होता है । श्रीमद् जयाचार्य द्वारा रचित 'भिक्षु यश रसायन' में इन दृष्टांतों का पद्यबद्ध अनुवाद हुआ है व स्वामी जी के जीवन से संबंध रखने वाला यह प्रथम विशद एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है | वैसे स्वामीजी के स्वर्गवास के तुरन्त बाद उनके दो विद्वान शिष्य मुनिश्री वेणीरामजी एवं मुनिश्री हेमराजजी ने दो अलग-अलग लघुकाय 'भिक्षु चरित्र' नामक ग्रन्थों की रचना की । ये दोनों ग्रन्थ गुरुभक्ति एवं साहित्य - सौष्ठव की दृष्टि से अनुपमेय रचनाएं हैं । हाल ही में मुनिश्री बुधमलजी द्वारा लिखित 'तेरापंथ का इतिहास' व मुनिश्री नवरत्नमलजी द्वारा रचित 'शासन समुद्र' व श्रीचन्दजी रामपुरिया द्वारा लिखित 'आचार्य भिक्षु : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' में भी स्वामीजी के जीवन पर समग्र दृष्टि से प्रकाश डाला गया है । इच्छामृत्यु एवं महाप्रयाण आचार्य भिक्षु का मेवाड़ में अन्तिम चातुर्मास संवत् १८५८ में केलवा में हुआ और वे मारवाड़ पधारे । मारवाड़ में अनेक गांवों में विचरण कर चार मुनियों व सात साध्वियों को दीक्षित किया व सैकड़ों श्रावक-श्राविका बने । संवत् १८५६ का चातुर्मास पाली में हुआ व वहां से विहार कर चाणोद से पीपाड़ तक, अनेक गांवों का स्पर्श किया व वहां विराजे । पीपाड़ से विहार कर स्वामीजी सोजत पधारे व बाजार में रायचंद मुंहता की छत्रियों में विराजे । वहां कई साधुसाध्वियों ने उनके दर्शन कर आगामी चातुर्मास के लिए निर्देश प्राप्त किए। वहां पर सिरीयारी के प्रख्यात श्रावक श्री हुकमचंदजी आछा ने आकर स्वामीजी को सिरीयारी में उनकी पक्की हाट में चातुर्मास करने की भावभीनी प्रार्थना की । स्वामीजी बगड़ी कंटालिया होते हुए सिरीयारी चातुर्मास हेतु पधारे व पक्की हाट में ठहरे। उनके साथ छः मुनि सर्वश्री (१) युवाचार्य भारमलजी, (२) खेतसीजी, (३) उदेरामजी, (४) रायचंदजी, (५) जीवोजी, (६) भगजी थे । भारमलजी स्वामी व्याख्यान वाणी के लिए प्रख्यात थे । मुनि खेतसीजी की सेवा-भावना व विनय अद्वितीय थे व उन्हें स्वामीजी 'सतयुगी' कहकर सम्बोधित करते थे । मुनि उदयराजजी उदार तपस्वी, मुनि रायचन्दजी बालब्रह्मचारी, मुनि जीवोजी वैराग्यशील एवं जनप्रिय तथा मुनि भगजी सेवाभावी व भक्त मुनि थे । सिरीयारी उस समय बहुत बड़ा कस्बा था, जहाँ लगभग ६०० ओसवाल जाति के घर थे व स्वामीजी की साधना से प्रभावित होकर लगभग ७०० घर तेरापंथी बन गए थे। उस समय संभवतः सिरीयारी तेरापंथ का सबसे बड़ा व प्रमुख क्षेत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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