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________________ १६० हे प्रभो! तेरापंथ प्रस्फुटित श्रद्धा उद्गारों पर समूचा संघ अपने आस्था के धनी आचार्यप्रवर के प्रति श्रद्धावनत होकर गौरवान्वित है । आचार्यप्रवर स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होकर अपने में अन्तनिहित अध्यात्म के आलोक को विश्व में विकिरण करते रहें तथा युगों-युगों तक हमारा पथ प्रशस्त करें, यही आज जन-जन की भावना है । उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक १०. युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ पूर्वनाम मुनि नथमलजी जन्म-स्थान, मातापिता-वंश आदि आपका जन्म संवत् १६७७ असाढ़ वदि १३ (१४-६-२०) को राजस्थान राज्य के जयपुर डिवीजन में टमकोर (विष्णुगढ़) गांव में हुआ। आपके पिता का नाम श्रीतोलारामजी चोरड़िया व माता का नाम बालूजी था। आपके शैशवावस्था (ढाई माह में आपके पिता का देहान्त हो गया और आपकी माता ने विकट परिस्थितियों में भी बड़े स्नेह से आपका लालन-पालन किया। संस्कार, वैराग्य, दीक्षा, शिक्षा आदि जब आप मात्र आठ वर्ष के थे तभी किसी भिक्षु ने आपकी मात्र आकृति देख कर आपके योगी बनने की भविष्यवाणी की थी। मात्र नव वर्ष की अवस्था में कलकत्ता महानगर की भीड़-भाड़ में आप खो गए तो अन्तश्चेतना के बल पर मात्र संयोग से सकुशल अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच गए। संवत् १९८७ में मुनिश्री छबीलजी ने टमकोर में चातुर्मास किया तथा उनकी व उनके साथ मुनिश्री मूलचंदजी (बीदासर) की प्रेरणा से आपके मन में वैराग्य जगा । आपने अपनी माता के साथ पूज्यकालूगणिजी के गंगाशहर में दर्शन किए तथा अनिर्वचनीय आनंदानुभूति प्राप्त की। इसी वर्ष माघ शुक्ला १० को आपकी माता बालूजी के साथ आपकी दीक्षा सरदारशहर में श्रीमद् कालूगणि के कर-कमलों से हुई। आपकी बड़ी बहन श्रीमालूजी को संवत् १९६८ में आचार्यश्री तुलसी ने दीक्षित किया। श्रीमद् कालूगणिजी ने दीक्षा के बाद आपको मुनिश्री तुलसी के सान्निध्य में शिक्षा प्राप्त करने का निर्देश दिया। आप इतने सहज, सरल और निश्चित वृत्ति के थे कि आपकी सारी सार-संभार तथा देख-रेख मुनि तुलसी ही करते थे। तब किसे पता था कि जीवन भर आपकी देखरेख तथा सार-संभार करना मुनि तुलसी की नियति बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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