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________________ ५. नवयुग का उदय व विकास अष्टमाचार्य कालूगणि (संवत् १९६६ से १६६३) जन्म एवं वंश-परिचय विक्रम संवत् १९३३ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया के पुण्य दिन शुभ मुहूर्त व शुभ बेला में थली प्रदेश के छापर गांव में मूलचंदजी कोठारी एवं उनकी धर्मपत्नी छोगांजी के घर एक पुण्यवान शिशु का जन्म हुआ। मूलचंदजी पहले ढंढेरू रहते थे। ठाकुर से अनबन के कारण संवत् १९१८ में छापर आकर बस गए। आपके जन्म के नव माह पूर्व छोगांजी सो रही थीं तब उन्हें ऐसा आभास हुआ कि एक शिशु उनकी चारपाई के पास खड़ा कह रहा है, 'मां, मैं तुम्हारी कुक्षि में आना चाहता हूं पर उसमें खतरा भी है, तुम्हारी कसौटी हो सकती है, पर मेरा विश्वास है कि तुम्हारे साहस से खतरा पार हो जाएगा और सब कुछ ठीक होगा।' छोगोंजी ने दृढ़ता से कहा, 'तुम निश्चिन्त रहो, मैं तुम्हारे लिए हर खतरा झेल लूंगी।' बातचीत समाप्त हो गई तथा शिशु अदृश्य हो गया। इस घटना के नवमहीने बाद आपका जन्म हुआ। जन्म के तीसरे दिन आधी रात को छोगांजी के शयन-कक्ष में सरसराहट हुई। उन्होंने दीये के प्रकाश में देखा-'एक भीमकाय दानव सामने खड़ा शिशु को ले जाने की चेष्टा में आगे हाथ बढ़ा रहा है।' छोगांजी ने आपको छाती से चिपका कर गोद में ले लिया, मां की ममता जाग उठी, रोम-रोम में शौर्य फूट पड़ा, वह साक्षात दुर्गा बन गई। उसने दानव के हाथ को झटका दिया। दानव उस तेज को सहन नहीं कर सका और तत्काल अदृश्य हो गया। ३३ वर्ष की अवस्था में छोगांजी के एकमात्र सन्तान आप ही हुए और उनके आंखों का तारा बन गये । उस समय श्रीमद् जयाचार्य बीदासर बिराज रहे थे । नगराजजी बैंगानी वहां के प्रमुख श्रावक थे। उन्हें अपने किसी इष्ट से भावी की बातों का पता चल जाता था। उन्होंने जयाचार्य के प्रवचन में खड़े होकर कहा, 'आज पूर्व दिशा में आठ मील की सीमा में एक भाग्यशाली शिशु का जन्म हुआ है जो तेरापंथ का आचार्य होगा।' आपकी जन्म कुंडली आपके दादा बुधसिंहजी कोठारी ने बनवाई तो ज्योतिषी ने कहा, 'यह जातक योगिराज होगा, यह घर में नहीं रहेगा, तैतीसवें वर्ष इसके द्वार पर हाथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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