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________________ ११२ हे प्रभो ! तेरापंथ ५. मुनि चम्पालालजी (राजनगर) संयम पर्याय (संवत् १९६२ से २०२६ तक) शासन के इतिहास के विशिष्ट प्रस्तोता मधुर व्याख्यानी एवं गण-गणि की संस्तुति में श्रद्धा भरे मधुर उद्गारों के कारण उन्हें 'मीठिया महाराज' से जनता सम्बोधित करने लगी। प्रभावक अग्रणीदूर प्रदेशों में विहरण-जबलपुर जाते मार्ग में दो बबर्ची शेर मिले पर स्वामीजी के नाम-स्मरण से वे स्वतः पास में होकर निकल गए। कोर्ट में आपको साक्षी में बुलाया गया पर बाद के संघ की चेष्टा से यह स्थिति पैदा नहीं हुई। आचार्यश्री ने उन्हें शासन-निष्ठ, विनय-निष्ठ आदि विशेषणों से सम्मानित किया। अन्त में १६ दिन का अनशन किया । युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी द्वारा शासन स्तंभ उपाधि से उपमित । ६. मुनि कुन्दनमलजी (जावद) संवत् १९६२ से २००२ तक संयम पर्याय । लेखनकला, चित्रकला, सिलाई, रंगाई आदि अनेक कलाओं में पारगामी, सूक्ष्म लिपि में (एक पोस्टकार्ड साईज पत्र में २५०० श्लोक) आपने कीर्तिमान स्थापित किया। नव-दीक्षित साधुओं में संघीय और धार्मिक संस्कार भरने तथा दीक्षार्थियों को प्रेरणा देने में विशेष कुशल । युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी द्वारा 'शासन स्तंभ' उपाधि से उपमित । ७. मुनि रणजीतमलजी (पुर) संयम पर्याय १६६३ से ८६ तक । उग्र तपस्वी। १८ बार मास खमण, शेष तपस्याओं के आंकड़े इस प्रकार हैं ४५/१, ५२/१, ६०/१,१०१/१, १८२/१, अन्त में ६० दिन का संलेखना तप । ८. मुनि चौथमलजी (जावद) संयम पर्याय संवत् १९६५ से २०१७ तक-वर्षों तक श्रीमद् कालूगणि तथा आचार्य प्रवर के अंगरक्षक और संघ संघपति के प्रति पूर्णतया समर्पित । संस्कृत व्याकरण के निर्माता व 'भिक्षु शब्दानुशासन' व 'कालू कौमुदी' के रचनाकार, विभिन्न कलाओं में निष्णात । संघ सेवा में जीवन भर संलीन रहे । श्रीमद् कालूगणि से अपूर्व स्नेह व आचार्यश्री से अद्वितीय सम्मान प्राप्त किया । आचार्यश्री ने उनकी प्रशस्ति में निम्नलिखत उद्गार प्रकट किए : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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