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________________ ११० हे प्रभो! तेरापंथ .. दीक्षा दी व समारोह में दो घण्टे बैठे। भादवा सुदि १२ को श्वास भारी हो गया। आपने मन्त्री मुनि को कहा, 'कल का दिन नहीं देख सकूँगा, आप पक्का ध्यान रखना।' श्वास बढ़ता ही गया, सायंकाल इतना तीव्र हो गया कि उसकी आवाज दूर तक सुनाई देने लगी। प्रतिक्रमण सुनने के बाद आपको सहारा देकर सुलाया . गया, किन्तु सोते ही आपने आंखें फेर दीं। मन्त्री मुनि ने चार आहारों का त्याग कराकर ऊंचे स्वर से शरण आदि सुनाए। देखते-देखते आपने नश्वर शरीर त्याग दिया । १९६६ के भादवा सुदि १२ को एक मुहुर्त रात्रि गए तेरापंथ धर्मसंघ का सिंह-पुरुष चिर निद्रा में सो गया। काल के आगे तेजस्वी पुरुष को भी हार माननी पड़ी। दूसरे दिन परंपरागत ठाट-बाट से आपकी शव-यात्रा निकली व तुलसीरामजी खटेड़ के नोहरे में दाह-संस्कार हुआ। जुलूस में स्वयं लाडनूं ठाकुर सम्मिलित हुए। आपके शासनकाल में ३६ साधु व १२५. साध्वियों की दीक्षा हुई। आपके दीक्षित अनेक साधुओं ने संघ को अमूल्य सेवाएं दी तथा संघ को पल्लवित -पुष्पित किया। युग प्रधान आचार्यश्री तुलसी ने श्रीमद् माणकगणि तथा आपके जीवन और कृतित्व पर क्रमशः 'माणक-महिमा' व 'डालिम चरित्र' प्रबन्ध काव्यों की रचना की जो न केवल इतिहास या तत्त्व ज्ञान की दृष्टि से बल्कि साहित्यिक लालित्य व गेयात्मकता की दृष्टि से भी बेजोड़ ग्रन्थ हैं। श्रीमद् माणकगणि व श्रीमद् डालगणि का शासनकाल स्वल्प रहा पर आपके कई दीक्षित साधुओं तथा साध्वियों ने संघ की प्रभावना में अभूतपूर्व वृद्धि की। जिनमें से कुछ प्रमुख दीक्षित शिष्य-शिष्याएं इस प्रकार हैं माणकगणि के युग के प्रमुख शिष्य-शिष्याएं १. मुनि दुलीचंदजी (पचपदरा) संयम पर्याय १९५० से १९८२ तक महान तपस्वी-आंकड़े इस प्रकार हैं ५/२, ६/१, ७/१, ८/१, ६/१, १०/१, ११/१, १२/१, १३/१, १४/१, ३१/१, ३६/१. २. मुनि खेमचंदजी (बरार) संयम पर्याय संवत् १९५१ से १९८८ तक महान तपस्वी-आंकड़े इस प्रकार १/१०००, २/२७, ३/६, ४/१०, ५/१०, ६/३, ७/२, ६/१, १७/१, २१/१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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