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________________ सप्तमाचार्य श्रीमद् डालगणि १०७ बैद व संपतमलजी दूगड़ दोनों परिवारों ने ऐसे अवसर पर श्रीमद् डालगणि की सेवा का भरपूर लाभ लिया । मर्यादा महोत्सव के बाद साधु-साध्वी लगभग डेढ़ माह तक गुरुदेव की सेवा में रहे। चैत वदि ७ को श्रीमद् डालगणि ने बहिविहारी सभी साधु-साध्वियों को उपकरण सहित बुला लिया। सभी सिंघाड़ों के चातुर्मास एक साथ फरमाकर तथा शेष काल विचरने की पचियां देकर तत्काल विहार करा दिया। तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशासन और समर्पण भाव की यह विरल घटना है। सीकर का गुलाबखां बंगाल में नौकरी करता था, उसे सांप काट गया। अनेक उपाय किए पर सब व्यर्थ गए। कर्मचन्दजी दूगड़ बीदासर वालों के कहने पर उसने 'डालगणि' के नाम की माला फेरनी शुरू की, भाग्य से उसका विष दूर हो गया और वह स्वस्थ हो गया। दूगड़जी ने उसे बीदासर में डालगणि के दर्शन करने की प्रेरणा दी। उसने बीदासर आकर डालजी महाराज के देवरे (मंदिर) का पता पूछा, पर पता नहीं लगा। उसे आश्चर्य हुआ कि इतने चमत्कारी देवता का मन्दिर कैसे छिपा रह गया ? बाद में उसने लोगों को सारी बात बताई तो उसे श्रीमद् डालगणि के दर्शन कराए गए। वह बहुत प्रसन्न हुआ, उसने तत्त्व समझकर गुरु धारणा की। उसके समूचे परिवार ने मद्य-मांस का त्याग कर दिया और वह प्रतिवर्ष गुरु-दर्शन करने आता रहता था। आपके समय में रीणी के धूड़जी छाजेड़ बड़े दृढ़वती, धर्म के मर्मज्ञ तथा मनोबली श्रावक थे। एक बार वे सामायिक में ध्यानस्थ थे, तब उनके शरीर पर से होकर एक काला नाग निकल गया पर वे अविचल रहे । अपने बीस वर्षीय इकलौते पुत्र के आकस्मिक निधन पर उन्होंने व्यथा को समभाव से सहन किया तथा अपने कृत कर्मों का फल जानकर आंसू तक आंखसे नहीं निकाले। अस्वस्थता कहा जाता है कि आपके उपयोग में आने वाले उपकरणों का वजन लगभग ११ सेर था। आप छ:-छः बाजोटों की जोड़ों पर बैठते थे, जो दिन में प्रायः तीनतीन बार बिछानी पड़ती थी। आसन में एक सलवट रहना भी आपको असह्य हो जाता था। आचार्यों की महिमा-गरिमा जितनी आपके समय में बढ़ी, उतनी पहले कभी नहीं बढ़ी। संवत् १९६४ में बीदासर से सरदारशहर की ओर प्रस्थान करते चार मील की दूरी पर 'कालों की ढाणी' पधारे तो बहुत थकावट आ गई व समय काफी लगा। साथ में गधैयाजी ने जब यह हालत देखी तो सरदारशहर पधारने का अवसर नहीं होना मानकर लंबा विहार स्थगित करने की सलाह दी। फिर आप एक माह सुजानगढ़ बिराज कर संवत् १९६४ के पौह वदि १० को लाडनूं पधार गए। आपका स्वास्थ्य क्रमशः बिगड़ने लगा, अन्न अरुचि, श्वास-वृद्धि और शक्ति क्षीण होने लगी। लाडनूं में लछीरामजी बैद की हवेली में फिर आपका जीवन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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