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________________ मर्यादा- अनुशासन का पुष्टिकाल ८६ -भाव का परिचय दिया । भिवानी चातुर्मास (संवत् १९७७) में जब बाल दीक्षा विरोध की आड़ में भयंकर विरोध हुआ, तब आपने साहस का परिचय देकर संघ को धैर्य और पराक्रम की प्रेरणा दी। संवत् १६६३ में मात्र २२ वर्ष की आयु में, आचार्य श्रीतुलसी को उत्तराधिकारी के रूप में, श्रीमद् कालगणि ने, आप द्वारा उन्हें उचित सम्मान देने • तथा संघ में उनके प्रति पूज्य भाव भरने के आश्वासन देने के बाद ही नियुक्त किया था। उनकी मनोकामना पूर्ण करने में वे सहायक बने । आचार्यश्री तुलसी के पिता तुल्य होते हुए भी आपने सदा उनको पूज्य एवं गुरु माना तथा स्वयं ने संघ के अन्य साधु-साध्वियों से भी उनको अधिक सम्मान दिया । वे हर समय संघ में गुरुनिष्ठा की भावना भरते रहे । देशाटन जाने पर आचार्यश्री आपकी विद्यमानता में सदा निश्चिन्त रहे । संवत् २००१ में आचार्यश्री ने आपको 'मंत्री मुनि' की विधिवत् उपाधि तथा कई बख्शीशें दीं। संवत् २०११ में जब रंगलालजी प्रभृति १२ साधु सैद्धान्तिक मतभेद के कारण अलग हुए और लगभग छः माह गण से बाहर रहे, तब आपकी प्रेरणा तथा दोनों पक्षों का आप पर अगाध विश्वास ही उनके संघ में पुरागमन का कारण बना, अन्यथा यह सम्भव ही नहीं था । 'गुरु की उदारता व शिष्यों के समर्पण भाव' आपके इस एक घोष ने वातावरण बदल दिया । आप वृद्ध एवं सम्मानित होते हुए भी प्रत्येक कार्य आचार्यश्री से पूछ कर करते । वैसे संवत् १६५५ से ही आचार्यों का भोजन आपके हाथों ही M कराया जाता रहा । आप दोनों समय गुरु चरणों में बैठकर प्रतिक्रमण करते । संवत् १६४६ अक्षय तृतीया से जब तक आप आचार्यों के साथ रहे, तब तक आचार्यों के प्रवचन के पूर्व उपदेश देने का गौरव आप को ही दिया गया । - दीक्षार्थियों की प्रथम परीक्षा आप के हाथों होती थी । संवत् २००६ से २०१६ तक मुनिश्री सरदारशहर में स्थिरवास रहे । इस अरसे में आचार्यश्री ने दो चातुर्मास तथा दो महोत्सव वहां कराए। वहां कई विशिष्ट साधु-साध्वियों का आनाजाना होता रहा। इन वर्षों में सरदारशहर में आश्चर्यजनक तपस्याएं हुईं, सरदारशहर तीर्थस्थली बन गया । आपके साथ शासन स्तम्भ मुनि सोहनलालजी (चूरू) व घोर तपस्वी मुनि सुखलालजी अनवरत सेवा में रहे । आचार्यप्रवर जब अन्य प्रदेशों में रहे तब आपको सदा आदर सूचक हृदयग्राही संदेश भेजते रहे । आपका देहावसान संवत् २०१६ माह वदि ६ को यकायक सरदारशहर में हुआ । *मुनि श्री हेमराजजी व मुनिश्री कालूजी ( बड़ा ) की शृंखला में तेरापंथ संघ का एक और उज्ज्वलतम नक्षत्र अस्त हो गया। आपकी स्मृति में स्वयं आचार्यप्रवर ने " मगन चरित्र' प्रबन्ध काव्य की रचना की । शासन समुद्र भाग १० ( लेखक मुनि - नवरत्नमलजी) के पृष्ठ संख्या ९१ से १७२ तक आपका सविस्तार जीवन-चरित्र दिया हुआ है | युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने जयाचार्य निर्वाण शताब्दी पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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