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________________ आत्म-विजय का मार्ग के कुछ रूप ही समर्थ हैं। इसका अर्थ यह है कि तपस्या (या संयम) ही केवल ऐसा मार्ग है जिससे प्राणी अपनी भौतिक प्रकृति एवं मनोवृत्ति के दबाव क्षेत्र से बाहर जाकर अंतःशोधन की ओर बढ़ सकता हैं। ये बाह्य प्रवृत्तियां कर्म क्षेत्र के अविरत प्रभाव में रहती हैं। (देखिये, चित्र 7.1)। साथ ही, यह अवधारणा 4 स यह भी निर्दिष्ट करती है कि तपस्या पूर्वोक्त अवधारणा 4 अ में वर्णित कर्म-बंध के पांच प्रकार के कारकों - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग - को निराकृत करती है। तपस्या चित्र 7.1 तपस्या के कारण कर्म-बल कवच (चक्र) और कर्म- निर्झरण, (अल्प विकर्णी रेखायें) तपस्या या संयम के द्वारा बंध के कारकों का क्रमिक विलोपन चौदह गुणस्थानों (आत्म-शुद्धि के चौदह चरणों) के रूप में निदर्शित किया गया है। इनका विवरण आगे दिया गया है। हमें 'तपस्याओं' को व्यापक संदर्भ में समझना चाहिये। ये अत्यंत सावधानी के साथ इंद्रियों पर नियंत्रण की प्रतीक हैं और सकारात्मक अंहिसा को पुरोभाग में रखती हैं अर्थात् "अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करो" (परिशिष्ट 3 ब उतरण 7.1)। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता की सीमा से परे तपस्याओं का अभ्यास नहीं करना चाहिये जिससे स्वयं को कष्ट हो। इसे स्वपीडन-रति के रूप में समझने की भ्रांति नहीं पालनी चाहियें। 7.2 आत्म-शोधन की धुरी और आत्म-शोधन के चरण : गुणस्थान हमने अध्याय 3 में जीवन की धुरी का परिचय पहले ही दे दिया है। अब हम इस धुरी के उच्चतर खंड पर विचार करेगें जो मानव प्राणियों से सम्बन्धित है। ये मानव-प्राणी जीवन के अन्य रूपों से आध्यात्मिकतः उच्चतर कोटि में आते हैं। चित्र 7.2 में ऐसे मनुष्यों की उन जीवन कोटियों को दर्शाया गया है जिनके जीवन-इकाई के मान निम्नतर के मानों से उच्चतर मानों तक परिवर्ती होते हैं (अर्थात् 10' से लेकर 10° तक, देखिये चित्र 3.1 व 3.2) अर्थात् जिनमें कर्म-पुद्गलों का घनत्व उच्चतम से लेकर न्यूनतम मान तक, परिवर्ती होता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि हमने चित्र 3.1 की जीवन-धुरी के ऊपरी भाग को चित्र 7.2 में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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