SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन्म-मरण के चक्र प्राथमिक घटक (इस जीवन चक्र के घाती) सारणी 4.1 : आठ कर्म-घटक (अ) सुख-विकारी (अ) दर्शन - विकारी (अ) चारित्र - विकारी (ब) वीर्य - अवरोधी (स) ज्ञान - आवरक (द) दर्शन - आवरक 0 Jain Education International द्वितीयक घटक (इस जीवन चक्र के अघाती) (य) अनुभूति - उत्पादक (य) सुख - उत्पादक (22) दुःख - उत्पादक ग्र (र) शरीर - निर्मायक (ल) आयु (जीविता) निर्धारक (व) परिवेश-उत्पादक 0 0 0 Goooo□ 0 0 0 0 0 0 0 य + र + ल + व ब अ2 0000 31, &000000000 के चित्र 4.2 कर्म - घटकों अनुक्रम के साथ संदूषित आत्मा पर कर्म - पुद्गलों के आठ कार्मिक घटक : बाह्य घटक अंतरंग घटकों से अधिक क्रियाशील होते हैं 1 4. 3 (अगले जन्म में) किसका परिवहन (विग्रह गमन) होता है ? हमने ऊपर यह बताया है कि चार द्वितीयक कार्मिक घटक ( अघातिया कर्म) दूसरे भावी जन्म के विविध पक्षों को प्रभावित करते हैं। विशेषतः शरीर-निर्माणक घटक ( नामकर्म) दो सूक्ष्म शरीरों को उत्पन्न करता हैं जो हमारे भौतिक शरीर की अभिव्यक्ति के मूल आधार हैं। ये दो शरीर हैं : 1. तैजस शरीर - संपुट ( Capsule) जो शरीर के विभिन्न महत्त्वपूर्ण कार्यों ( तापमान) आदि को संचालित एवं संरक्षित करता है। 35 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy