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जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला
होने पर, एक कर्म-बल क्षेत्र या कर्म-क्षेत्र (प्रभाव क्षेत्र) का निर्माण होता है। इस बल-क्षेत्र के कारण कर्मों का आस्रव होता है अर्थात् सभी दिशाओं में विद्यमान कार्मन-कण आत्मा में प्रवाहित होने लगते हैं। साथ ही, कर्म-बल आत्मा के बाधित-वीर्य घटक से संयुग्मित होकर आगंतुक कार्मन-कणों के साथ बंध (fuse) जाते हैं। इस प्रक्रिया को हम कर्म-बंध कहते हैं।
इस नये कर्म बंध के कारण आत्मा के साथ बंधे हुए समस्त कर्मों का पुनर्गठन होता है और यह प्रक्रिया अविरत रूप से चलती रहती है। इस प्रक्रिया को चित्र 2.1 से 2.4 में प्रदर्शित किया गया है। यहां हम कर्म-सहचरित आत्मा को एक वर्ग की आकृति के रूप में प्रदर्शित करेंगें जहां कर्म-पुदगल इस क्षेत्र में विकर्णी रेखाओं में बताये गये हैं। साथ ही, यहां कर्म-बल क्षेत्र को वर्ग के बाहर समानांतर रेखाओं से प्रदर्शित किया गया है (चित्र 2.1)। वास्तव में, चित्र 2.1 कर्म-बंध की प्रक्रिया को निरूपित करता है। यह निरूपण इस पुस्तक में सर्वत्र प्रस्तुत किया जायगा। चित्र 2.2 में कर्म-क्षेत्र के द्वारा आकर्षित कार्मन-कणों (जो कि काले वृत्त-बिन्दुओं के द्वारा दिखाये गये हैं) को प्रदर्शित किया गया है। यह आकर्षण मुड़ी हुई बल रेखाओं से व्यक्त किया गया है। चित्र 2.3 में कर्म-बंध की प्रक्रिया को आत्मा की टेढ़ी-मेढ़ी बाहरी सीमा के रूप में बताया गया है। चित्र 2.4 में कर्म-पुदगलों की वृद्धि, फलस्वरूप और प्रबलतर कर्म-बल क्षेत्र को अनेक मोटी और विकर्णी रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
यहां यह महत्त्वपूर्ण है कि हम आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं को और उनके फलस्वरूप उन अवस्थाओं में विद्यमान भौतिक बलों को भी विभेदित करें। इस प्रकार आत्मा की वास्तविक भौतिक अवस्था को कर्म-आम्रव कहते हैं जिससे उस पर कार्मन-कणों का बलपूर्ण आगमन होता है। जहां कार्मन कणों का कर्म-पुद्गल के साथ वास्तविक स्वांगीकरण होता है, उसे कर्म-बंध कहते हैं।
अभी हमने कर्मबंध की प्रक्रिया बताई है। पर इसके समान ही कर्मों के क्षय या निर्जरा की प्रक्रिया भी होती है जहां कार्मन-कणों का निःसरण या विगलन होता है। तथापि, यह ध्यान में रखना चाहिये कि यदि कर्म-पुदगल नहीं हैं, तो कार्मन-कण आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते। 2.3.2. कार्मिक घनत्व
। प्रकृति में विद्यमान कार्मन-कण एक-दूसरे से अभिन्न या समरूप ही होते हैं, लेकिन आत्मा के बाधित वीर्य से संयुक्त कार्मिक बल इन कार्मनों में कुछ विशिष्ट क्रियात्मकता उत्पन्न करते हैं जिससे वे विभेदित हो जाते हैं।
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