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________________ 144 जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला परिशिष्ट - 4 गुणस्थान और सांप-सीढी का खेल इस में लेखक ने विभिन्न गुणस्थानों के बीच प्रमुख संक्रमणों को निरूपित करने के लिये सांप और सीढ़ी के परिवर्धित रूप को विकसित किया है (चित्र प-4.1 देखिये)। इस खेल के बोर्ड (फलक) में 16 वर्ग हैं और उनमें एक सिक्के को उछालने के बाद गमन किया जाता है। सिक्के के पृष्ठ भाग (पुच्छ) का अर्थ है 1 अंक और शीर्ष का अर्थ है 2 अंक। इस फलक पर पहले दो वर्ग तिर्यंच जगत् (पशु जगत) के निम्नतर और उच्चतर जीवन को निरूपित करते हैं। वर्ग 3 से मनुष्य जीवन का रूप प्रारम्भ होता है जो पहले चरण से उच्चतर चरणों की ओर जाने के लिये तत्पर है। इस खेल के निम्न नियम हैं: (अ) प्रारम्भ करने के लिये सिक्के का पृष्ठभाग आना चाहिये। (ब) वर्ग 2 पर, सिक्के का पृष्ठभाग ही फेंकना चाहिये। इससे खिलाड़ी तीसरे चरण पर पहुंचता है और, सीढ़ी के तीसरे चरण पर चढता है। यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि शीर्ष के उछालने पर वर्ग 2 से वर्ग 4 में जाने की अनुमति नहीं है। खिलाड़ी वर्ग 4 में तभी आ सकता है जब वह वर्ग 7 में पहुंचे और फिर वहां से सर्प मार्ग से वर्ग 4 में आये। इस खेल का अंत यथार्थतः पूर्ण होना चाहिये अर्थात् तेरहवें चरण पर खिलाड़ी को सिक्के का पृष्ठ ही उछालना चाहिये। महावीर के शिष्य आनंद के उदाहरण को ध्यान में रखते हुए यह संभव है कि इस सीढ़ी पर चरण 5 से चरण 8 पर साधु अवस्था के चरण को प्राप्त किये बिना ही पहुंचा जा सके। सामान्यतः यह खेल इस बात पर प्रकाश डालता है कि कब सीढी पर चढा जा सकता है (प्रगति) और कब सर्प मार्ग से नीचे जाया जा सकता है। खिलाड़ी जब एक बार बारहवें चरण पर पहुंच जाता है, तब वह चौदहवें चरण पर सदैव पहुंचता ही है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इस धर्म-कल्प खेल के प्राथमिक रूप को ज्ञान-बाजी (ज्ञान का खेल) कहते हैं। इसके निदर्शन और विस्तृत विवरण के लिये पाल (1994, पेज 87) की पुस्तक देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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