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जैन तर्कशास्त्र
113 पुस्तक देखिये। जैन दृष्टिकोणों पर हम महलनोबिस (1954) के निम्न उद्धरण के साथ इस अध्याय का समापन करते हैं :
"अंत में, मैं जैन दर्शन के वास्तविक और बहतत्त्ववादी दृष्टिकोणों के प्रति आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं, जहां वस्तु-तत्त्व के बहुरूप और अनंततः विविध पक्षों पर अविरत महत्त्व दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के सम्बन्ध में जैनों का स्पष्ट दृष्टिकोण है जहां निरंतर परिवर्तनशीलता एवं अन्वेषणशीलता के लिये बहुत अवसर है।"
निक्षेप
9.6 पारिभाषिक शब्दावली : अनेकांतवाद : जैनों का समग्रवादी या सापेक्षवादी सिद्धान्त स्याद्वाद
= सापेक्ष कथन सिद्धान्त नयवाद
= विविध दृष्टिकोणों का सिद्धान्त प्रमाण
= ज्ञान की प्राप्ति के अंग/व्यापक सम्यक्-ज्ञान
शब्दों के अर्थ या आशय के आधार पर वर्गीकरण सप्तभंगी नय = सप्त-अवयवी सापेक्ष कथन स्यादस्ति
= किसी अपेक्षा से, यह है। स्यान्नास्ति
किसी अपेक्षा से, यह नहीं है। स्यादस्ति-नास्ति = किसी अपेक्षा से, यह है और यह नहीं भी है। स्यादवक्तव्य = किसी अपेक्षा से, यह वचनगोचर नहीं है। स्यादस्ति-अवक्तव्य = किसी अपेक्षा से यह है और यह अवक्तव्य है। स्यान्नास्ति-अवक्तव्य = किसी अपेक्षा से यह नहीं है और यह अवक्तव्य है। स्यादस्ति-नास्ति-अवक्तव्य = किसी अपेक्षा से, यह है, यह नहीं है और यह
अवक्तव्य है। स्यात्
= किसी अपेक्षा से अवक्तव्य
= अव्याख्येय, वचन से अगोचर ज्ञान
जानना मतिज्ञान
अनुमानित/आनुभविक इंद्रिय-मन-आधारित ज्ञान श्रुतज्ञान : शब्द-युक्त/मौखिक या आगमिक ज्ञान अवधिज्ञान : सीमित ज्ञान मनःपर्यव ज्ञान : मनों-विचारों का ज्ञान केवलज्ञान : अनंत ज्ञान/सर्वज्ञता
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