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________________ ६६ मार्क्स और लेनिन ने इस शोषण के कारण, शोषणकर्ताओं का फैलाया कर्मजाल तोड़कर यह सिद्ध किया कि अमीरी-गरीबी का कारण मात्र भाग्य या कर्म नहीं । सत्य तो यह है कि कर्म ले सिद्धांत का हमने अपनी सुविधा अपने बचाव और अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए किया है । " परिणाम भगवान देगा" की नीति भी भाग्यवादी बनाता है । यह निर्विवाद काम्य सत्य है कि शुभ या अशुभ पूर्व कर्मों समय पर परिपाक होने से उदय होता है पर इनका यह मतलब भी नहीं कि हम निष्किय बैठें। हमें एक बहादुर की तरह उसके परिणामों को हंसकर अर्थात् तटस्थ होकर सहन करना चाहिए | यदि हम तटस्थभाव को धारण कर सकेगे तो कर्म का वेग स्वयं कमजोर पडेगा । आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रतिकार भी करना होगा | उदा. रास्ते में चार लूटना चाहे तो बचाव करना होगा । रोग होने पर दवा लेनी होगी । धैर्य धारण करना होगा । कर्म जहाँ कार्य का प्रतीक हो वहां हमारे कार्य व्यावहारिक दृष्टि से ऐसे हों जो घर परिवार और समाज के लिए उपयोगी हो । सदगुण युक्त हों । धार्मिक भाषा में कहें तो वे शुभबंध के कारण हों । हमारे पाप पूर्ण कर्म हमें क्लेश करायेंगे । अन्य को परेशान करनेवाले एवं अराजकता पैदा करनेवाले होंगे । हमें अशुभ कर्मों से बचना चाहिए | यद्यपि निश्चयरूप से मुक्तअवस्था का पथिक इन भौतिक शुभाशुभ कर्मबंध से बचता है । वह शरीर से हटकर आत्मा के साथ जुड़े कर्मों के निरंतर क्षय का प्रयास करता है । उसके लिए पाप और पुण्य दोनों बेडिया हैं । हम मानते हैं कि गूढ़वृत्तियों को हम नहीं जानते । पर, इतना तो हमारे हाथ में है की हम अविवेक से गलत कार्य करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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