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________________ गुणव्रत जैसा कि ऊपर कहा है कि गुणवत एव शिक्षाबत महाव्रतों को ही पुष्ट करने वाले तत्व हैं। दूसरे शब्दों में अधिक सूक्ष्मता से महानतों के पालन मे ये सहायभूत तत्व हैं | गुणन्नत तीन हैं (१) दिगव्रत । (२) अनर्थदंडवत । (३) भोगोपभोग परिमाणब्रत । दिगव्रत : आवश्यकता से अधिक आवागमन करने से भी हिंसा आदि कार्य होते हैं । अतः मोक्षमार्ग का साधक दशों दिशाओं में अपने आवागमन को निश्चित दूरी तक प्रतिबद्ध करता है । वह वन, पर्वत, नदी, नगर या प्रदेश के चिह्न या उन्हें तय करता है। आधुनिक युग में कुछ किलोमीटर तक का क्षेत्र निश्चित किया जा सकता है । इसके साथ ही बाह्य सांसारिक विषय-कषाय संबंधी कार्यों के लिए मेरा जीवन नहीं है-ऐसा जीवन मैं नहीं जिऊगा-इस प्रकार का निर्धारण करना भी इस के अन्तर्गत है । क्योंकि जब क्षेत्र आदि निश्चित होंगे तब स्वाभाविक रुप से समारभ-समार भ और आरभ की क्रियायें सीमित होगी । कषायों का संयम होगा। दिगवत धारी प्रमाद में भी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं करता । वैसे ऐसे प्रती श्रावक के लिए प्रमाद का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता । इस व्रत के मूल मे ही तृष्णा के संयम का भाव है-- जो सभी अनथों की जड़ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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