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________________ एकासन शाब्दिक व्याख्या अयंत सरल है । एक आसन से बैठकर भोजन करना एकासन है । परंतु यहाँ इसका प्रयोजन एक प्रकार से उपवास के संदर्भ में ही हुआ है इसका अर्थ है कि एक ही समय इच्छा से कम निःस्वाद शुद्ध भोजन करना ही एकःसन है । मुझे तो लगता है कि एकासन में उपवास से अधिक संयम की आवश्यकता या दिनचर्या होती है । एकासन करने वाले की भोजन के अलावा संपूर्ण क्रिया उपवासी की भांति ही होती है । मात्र शक्ति की अपेक्षा वह भूखा न रह कर एक बार भोजन करता है । उपवासी को भोजन ही नहीं करना हैं जबकि एकोसनी को भंज्य पदार्थ सन्मुख होते हुए भी न्यून भोजन करना है । उसकी कसौटी तो इसी में है कि प्रिय भोज्य पदार्थों में से ही प्याग करे, रस प्याग करे और निर्लेप भाव से भोजन करे । उसका उद्देश्य भोजन करना नहीं होता बल्कि साधना के लिए शरीर को पोषण देना ही होता है। एकासन करने वाला अमुक भोज्य-पदार्थ भोजन में मिलें इसली आशा व अपेक्षा नहीं रखता उसका आग्रह मात्र शुद्ध एवं सात्विक भोजन से होता है । उसकी वृति स्वादलोलुप नहीं होती। मैं भूखा रहा हूँ ऐसी मनोभावना उसकी नहीं होती और न भूख साधने का अहम ही होता है । इस प्रकार जन, स्वाध्याय, सामायिक, प्रतिक्रम ग में लीन रहता है । ऊनेोदर रहकर संयम धारण करता है । भोजन के प्रति अपनी लालसा कम करता है। अंतमें इतना ही प्रतिफलित है कि व्यक्ति कम खाकर स्वास्थ्य लाभ तो प्राप्त करता ही है-वह इन्द्रिय संयम भी पालता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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