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________________ १३९ सामायिक घर में भी की जा सकती है परंतु, उत्तम स्थल तो मंदिर, एकान्तवन- बगीचा या ऐसा एकांत स्थान जहाँ जीवजंतुओं का विक्षेप न हो । आवाज ( शोर) न हो, चित्त को अस्थिर चनाने वाला वातावरण न हो । ऐसे स्थान में ही चित्त की दृढ़ता न सकती है । सामायिक का समय पूर्वाह्न मध्याह्न एव अपराह्न माना गया है । साधक की शक्ति के अनुसार इसका कोई अधिक से अधिक काल निवरण नहीं है-पर, कम से कम जघन्य काल अंतरमुहूर्त अर्थात ४८ अड़तालीस मिनिट का माना गया है । सामायिक की विधि का हम वर्णन कर ही चुके हैं | यहां हम उसकी कुछ क्रियाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालेंगे । साधक को स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र धारण कर एकांत में या जिन प्रतिमा के समक्ष पूर्व या उत्तर दिशा में मुँह करके जिनवाणी, जिनधर्म और fafe को त्रिकाल वंदना करनी चाहिए । वह इस काल में मात्र देव मात्र गुरु का चिन्तन करते हुए संसार मुक्ति ही कामना करे । णमोकार मंत्र का निरन्तर जाप करे | ऐसा सामायिक करने वाला साधु तुल्य है- वह संसार के कर्मबन्धों का क्षय करता है । उसकी चित्तवृत्ति इतनी निर्मल होने लगती है कि जीवन के व्यवहार में वह ईमानदार, सत्यवत्रता एवं मैत्री का व्यवहार करने लगता है । उसकी समता मैत्री विश्वशांति का आह्वान करती है । - सामायिक योग-ध्यान का ही मूल रूप है । इस क्रिया से बहिरात्मा अन्तरात्मा से जुड़कर परमात्मा बनने का प्रयत्न करती है वही योग है या ध्यान में बैठने का महत्व सामायिक में बैठने की क्रिया में स्वयं वर्णित है । योग का स्वीकार वेद, उपनिषद, सांख्यदर्शन, नाथ, सिद्ध सम्प्रदाय और कबीरपंथ में है । इन सभी ने युग की श्रेष्ठ को स्वीकार किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003666
Book TitleJain Dharm Siddhant aur Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherSamanvay Prakashak
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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