SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध समझने वालों के लिये श्री पं० टोडरमल जी ने मोक्षमार्ग प्रकाश में लिखा है कि "अपनी प्रात्मा को सिद्ध समान अनुभव है, सो आप प्रत्यक्ष संसारी है । भ्रम करि आपको सिद्ध मान, सोई मिथ्या दृष्टि है।" निश्चय-एकान्तवादी कान जी आदि श्री पं० टोडरमल जी के उस वाक्य पर गम्भीरता से विचार करें। जियो और जीने दो अन्त में मैं एक बात कह कर इस प्रकरण को समाप्त करता हूँ। कान जी ने मोक्षमार्ग की किरण के १८४ वें पृष्ठ पर लिखा जीयो और जीने दो, ऐसा अज्ञानी कहते हैं। आजकल का मनुष्य इतना अधिक जिह्वा-लोलुपी बनता जा रहा है कि मुर्गा आदि जीवों को जीवित जलाकर उसका मांस खाने लगा है, अण्डा खाता है, मछली, कबूतर आदि जीवों को बड़ी निर्दयता से मारकर उनसे अपना पेट भरता है और प्रसन्न होता है । जीवित गाय, भैंसों के शरीर से चर्म उतारा जाता है, गर्भिणी गायों, भेड़ों, बकरियों को औषध खिला कर उनका गर्भपात कराते हैं फिर उनके पेट से निकले हुए बच्चों का कोमल चमड़ा उतार कर कोमल जूते बनाते हैं । इत्यादि रूप से आज का निर्दय मनुष्य हिंसा कर रहा है । ऐसे धर्म-कर्म-भ्रष्ट निर्दय हिंसक मनुष्यों को जीव-हिंसा से छुड़ाने के लिये साधारण जनता में कहा जाता है कि 'जियो और जीने दो।' यानी-तुम स्वयं शान्ति से अपना जीवन व्यतीत करो तथा अन्य जीवों को शान्ति के साथ जीने दो। अर्थात् किसी भी जीव को मत सताओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003665
Book TitleDigambar Jain Sahitya me Vikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherJain Vidyarthi Sabha Delhi
Publication Year1964
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy