________________
दि जैन साहित्य में विकार
"पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं । आज मैं विरोधियों को प्यार करता हूँ, क्योंकि अब मैं अपने को विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूँ। मेरा बनेकान्तवाद, सत्य और अहिंसा, इन युगल सिद्धान्तों का ही परिणाम है।"
-महात्मा गाँधी हरिजन, २१ जुलाई, १९४६ ई.
विद्यानन्द मुनि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org