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________________ प्रकरण नौवाँ ६२ का लिखना झूठा है, या मणिलालजी का लेख मिथ्या है। ___ अब हम स्वयं इनके लिखे लेखों को ऐतिहासिक कसोटी पर कस के दिखाते हैं कि कितने 'भर इन लेखों में सत्यांश है ? अथवा केवल काल्पनिक कागजी कपोत ही उड़ाए गए हैं। "लौकाशाह ३२ जैनागमों की दो दो प्रतिएँ तैयार कर चुके थे उस समय भण्डार के स्वामी यतिजी को यह खबर मिली कि लौकाशाह गुप्त रूप से एक एक प्रति पृथक् निज के लिए रात्रि के समय लिखते हैं । तब उनसे लिखवाना बंद कर दिया x x x" पर हमारी समझ से स्थानकमागी भाइयों का यह कहना इतिहास की दृष्टि से सत्य प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि लौकाशाह ने अपने हाथों से ३२ जैनागमों की दो दो प्रतिएँ लिखी थीं; तब उनमें से एकाध प्रति या एकाध छोटा मोटा पन्ना ही उनके हस्ताक्षरों वाला कहीं भी उपलब्ध नहीं होता इसका कारण क्या है ? क्योंकि चौदहवीं पन्द्रहवीं सदी के लिखे हुए तो इस समय अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध हैं तो फिर सोलहवीं शताब्दी के लिखे लौकाशाह के हस्तलिखित अक्षरों के ही नहीं मिलने में क्या विशेष कारण है x x x ?" जैन युग वर्ष ५ अंक १० इस प्रमाण से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि लौंकाशाह ने अपने लिये या यतिजी के लिए कोई भी सूत्र नहीं लिखा था, विशेष खुलासा हम आगे चल कर फिर करेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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