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________________ भूमिका "श्रीमान् लौकाशाह के जीवन पर ऐतिहासिक प्रकाश" नामक पुस्तक की लम्बी चौड़ी प्रस्तावना लिखने की आवश्यकता इस कारण प्रतीत नहीं होती है कि इस पुस्तक के श्रादि के चार प्रकरण प्रस्तावना रूप में ही लिखे हुए हैं, तथापि यहाँ पर इतना बतला देना अत्यावश्यक है कि इस पुस्तक को इण प्रकार से लिखने की आवश्यकता क्यों हुई ? इस प्रश्न के उत्तर में हमारे खास आत्म बन्धु श्रीमान् सन्तबालजी (लघुशताऽवधानी मुनि श्री शौभाग्यचंद्रजी) का नामोल्लेख ही पर्याप्त है क्योंकि आप श्री ने ही इस संगठन युग में अकारण जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों का अपमान, और परमोपकारी पूर्वाचार्यों की निन्दा करने की "धर्म प्राण लोकाशाह" नामक लेख माला लिख “जैन प्रकाश" पत्र ता० १२-५-३५ से ता० १९-१-३६ तक के अड्डों में प्रकाशित करवा अपने दूषित मनोविकारों को प्रदर्शित किया है। उपर्युक्त पत्र के इस विषय के तमाम अङ्क मेरे पास ज्यों के त्यों आज भी सुरक्षित हैं। - यदि कोई व्यक्ति अपने मान्य पुरुषों की प्रशंसा में उपमाओं के पहाड़ खड़े करदें अथवा अतिशय उक्ति के साहित्य समुद्र को भी सुखा दें तो हमें कुछ नहीं कहना है किन्तु वह अनधिकार चेष्टा कर अपने पूज्य पुरुषों की जीवनी लिखने की ओट में विश्वोपकारी महात्माओं का अपमान कर अपने लाखों स्वधर्मी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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