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________________ प्रकरण-पाठवां लौकाशाह का ज्ञानाऽभ्यास । श्रीमान् लौंकाशाह के जीवन विषय में जितने लेखकों ा के नाम हम पीछे लिख आए हैं, उनमें किसी एक ने भी ऐसा उल्लेख कहीं पर नहीं किया है कि लौकाशाह ने गृहस्थाऽवस्था में किसी के पास ज्ञानाभ्यास किया था, और न लौकाशाह के जीवन में भी ज्ञान की झलक पाई जाती है । हाँ ! स्थानकमार्गी साधु मणिलालजी, अमोलखर्षिजी, संतबालजी और वाड़ी० मोसी० शाह अपनी २ कृतियों में यह उल्लेख जरूर करते हैं कि, लौकाशाह के अक्षर सुन्दर मोती के समान चमकीले थे, पर इससे यह सिद्ध नहीं होता कि लौंकाशाह विद्वान थे। किन्तु इससे यह सिद्ध होता है कि वे एक अच्छे लिखने वाले लहिया (नकलनविज) थे और जैन-उपाश्रयों में लिखाई का काम करते थे, जैसे आज भी अनेक ब्राह्मणादि लोग कर रहे हैं । लिखाई का काम करने मात्र से विद्वत्ता प्राप्त होना नितान्त असंभव है, यदि संभव हो तो सांप्रत में जिन नकलनविजों ने अपने जीवन का बड़ा भाग इस काम में व्यतीत किया है उनसे पूछा जाय कि पाप कितने विद्वान् हुए हैं। हमें अमुक शब्द का अर्थ तो बता दीजिये-देखें आपको सिवाय "ना" के क्या उत्तर मिलता है। हाँ, निरन्तर लिखने से जरूर अच्छा (लहिया) नकलनविज हो सकता है । यही हाल लौंकाशाह का था, उनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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