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प्रकरण - सातवां
लौंकाशाह का व्यवसाय ।
विक्रम
क्रम की सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के लेखकों ने लौंकाशाह का जो कुछ जीवनवृत्त लिखा है, उसमें उन सब लेखकों का प्रधानतया यही एक मत रहा है कि लौंकाशाह एक साधारण गृहस्थ था, और नाणावटी का तथा लिखने का धंधा किया करता था, जैसे कि यति भानुचन्द्रजी वि० सं० १५७८ में लिखते हैं ।
"लखमसी फूई नो दीकरउ, द्रव्य लुंका नुं तेाइहरऊं । उमर वरिस सोलानी थई, चूडा माता सरगिं गई ॥ आवइ अहमदाबाद मंझार, नाणावटी नो करइ व्यापार ॥ दयाधर्मं चौपाई
काशाह का पिता लोकाशाह की ८ वर्ष की उम्र में और माता १६ वर्ष की उम्र में स्वर्गस्थ हुई । लौंकाशाह की ८ वर्ष की वय में ही उसके पिता के मर जाने पर उसकी सब कीमती जायदाद, उसकी भुश्रा का लड़का लखमसी हजम कर गया । बाद में लौंकाशाह निर्द्रव्य और निराधार होकर अहमदाबाद श्राया और वहाँ नाणावटी (टका कोड़ी की कोथली ) का धंधा करना. प्रारंभ किया ।
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