SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कडुआमत पटावली १२- लघुशङ्का टाल के शुद्धि करना' । १३- मूत्र भाजन भर कर नहीं रखना । १४ - पूंजी परमार्जि मात्रादी परठना । १५ - किसी को कठोर बचन न कहना | C १६ - पूंजियों के बिना खाज नहीं खिनना । १७- पांच स्थावर जीवों की जयणा करना । १८ – निवाण तलाब आदि से स्वयं जल न लाना । १९- विना छाने हुए जल से वस्त्र नहीं धोना । २० - स्वयं आरंभ न करना । २१ - वीजा (पंखे) से हवा - पवन न लेना । २२ - वनस्पतियों को अपने हाथ से न काटना | २३ -- त्रस जीव को तकलीफ न देना । २४ - त्रस जीव को जान बूझ के नहीं मारना । २५ – सर्वथा मृषाबाद (झूठ बचन ) न बोलना । २६ -- बिना दिये किसी की कोई भी चीज न लेना । २७ - मनुष्यणी या तीर्यंचणी का संघट नहीं करना । २८ - स्वयं परिग्रह (पैसा) नहीं रखना । काशाह | इसके विषय में वि० सं० १५४३ में पण्डित लावण्य समय लिखते हैं कि लौंकाशाह सामायिक, पौषह, प्रतिक्रमण, प्रत्या• ख्यान और दान तथा देवपूजा नहीं मानता था । इसलिए कडआशाह को यह सख्त नियम बनाना पड़ा हो । १ नंबर ११-१२ ये दोनों नियम भी लौकाशाह की अशौचता के कारण ही बनाए हों। इसके विषय में पं० लावण्य समयजी भी पुकार करते हैं । Jain Education International ३३० For Private & Personal Use Only ; www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy