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पंजाब की पटाबलि
तथा उनके कोई भी साधु किसी भी इतिहास में आज तक नजर नहीं आया।
(७) श्रावकों की हैसियत से यदि इनकी पर्या लोचना की जाय तब, भी जैन श्वे. दि० समुदाय के उपासकों, तथा श्रावकों की संख्या करोड़ों तक थी, और बहुत से श्रावकों ने जैन शासन की सेवाएँ की, उनका इतिहास आज विस्तृत रूप से हमें प्राप्त है, पर पंजाब की पटावली में जो नूतन आचार्यों की नामावली है, उसमें के आचार्यों का न तो कहीं अस्तित्व पाया जाता है और न, उनके उपासक-श्रावकों का होना कहीं साबित होता है, तब निःसंकोचतया यह बात क्यों न मानली जाय कि ये पटावलिएँ स्थानकवासी दोनों समुदायों ने बिलकुल कल्पित अर्थात् जाली तैयार की है। इतने पर भी यदि पजाब और कोटा की समुदाय वाले इन पटावलियों पर विश्वास रखते हों सो उनको चाहिए कि इनकी प्रामाणिकता बताने को जनता के सामने कुछ विश्वसनीय प्रमाण पेश करे।।
अस्तु ! उक्त प्रकार से इन सब पटावलियों की प्रसंगोपात्त कुछ समालोचना कर अब हम पाठकों को यह बतला देना चाहते हैं कि श्रीमान् शाह ने अपनी नोंध में, मेरे इस निबन्ध में बताई गई अनेक त्रुटियों के अलावा भी छोटी बड़ी कई ऐसी गप्पें मारी हैं, जिन पर सभ्य संसार को बजाय तसल्ली आने के यकायक हँसी आजाती है और नोंध की सत्यता में स्वतःसन्देह हो जाता है। पर हम निबन्ध बढ़ जाने के भय से उन्हें योंही व्यर्थ समझ छोड़े देते हैं। कारण, जब नमूने के तौर पर हमने प्रकृति निबंध में कई एक बातों की समालोचना कर भली
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