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________________ २७७ बुरानपुर का हाल हो जाना केवल शाह ही अपनी पुस्तक में लिख सकते हैं। अच्छा होता, यदि शाह इस बीच के १०० वर्षों में एकाध भयंकर भूकम्प होने की भी कल्पना कर लेते, जैसा कि हाल ही में विहार और क्वेटा में घटित हुआ था। परन्तु दुःख है कि इस विषय में शाह की कल्पना बुद्धि ने कुछ देर के लिये आप से रिहाई ले ली, अन्यथा शाह की कोरी कल्पना स्वयमेव सत्य हो जाती, और कहने को यह स्थान मिल जाता कि शिवजी के समय के २० उपाश्रय और हजारों श्रावकों के घर भूकम्प में भूमिसात् होगए । नहीं तो दूसरा तो क्या हो सकता है ? यदि यह कहा जाय कि वे सब लोग और उपाश्रय मूत्तिपूजकों का शरण लिया तो आप का बचाव हो सकता है। - ऐसी ही एक अघटित घटना ऐ० नों० के पृ० १३७ पर शाह ने बुरानपुर के नाम पर फिर गढली है । शाह वहां लिखते हैं कि "स्वामी लवजी के समय बुरानपुर में १०००० घर जैनों के थे जिनमें केवल २५ घर लवजी के अनुयायी थे। उन्हें भी जाति से बहिष्कृत कर दिया था। इतना ही नहीं पर उन्हें कुओं पर पानी भी नहीं भरने दिया जाता था, और नाई धोबी आदि कोई भी लोग उन २५ घरवालों के यहाँ जाकर काम नहीं कर सकते थे।" १-क्या शाह ने ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध इस नवलाख की लागत के मंदिर का लक्ष्य करके ही तो नवलखे उपाश्रय की कल्पना नहीं की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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