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नवलखा उपाश्रय तो वाणी बोलने में दरिद्रता क्यों दिखावें वहाँ तो मुँह जबानी लाखों करोड़ों क्यों न कहदें।
____ इससे आगे पृष्ट १२७ में स्वामी प्रागजी की नोंध में शाह लिखते हैं:
x x x “स्वामी प्रागजी के समय इस धर्म के साधु अहमदाबाद में कदाचित् ही आते थे क्योंकि चैत्यवासियों का जोर ज्यादा था और इससे बहुत परिसह सहन करने पड़ते थे। यहाँ तक कि कोई श्रावक दयाधर्म को पालन करता हुआ जान पडता तो जाति बाहिर कर दिया जाता था। इस स्थिति का सुधार करने के लिए ही प्रागजी ऋषि अहमदाबाद आए, और सारंगपुर तलिया की पोल में गुलाबचंद हीराचंद के मकान में ठहरे ।" x x x:
पाठकों ! स्वामी प्रागजी का समय वि० सं० १८३० का है और शिवजी का वि० सं० १७२५ का इस प्रकार इन दोनों साधुओं के बीच में प्रायः एक शताब्दी का अन्तर है। सत्तरहवीं शताब्दी में जैन कुटुम्ब की विशालता होने से प्रति घर ५ मनुष्य हमेशा नहीं तो पयुषणों के दिनों में तो अवश्य उपासरे में आते होंगे, तब ७००० घरों के ३५००० मनुष्य बैठे उतना विशाल तो एक नवलखा उपाश्रय, तथा दूसरे उन्नीस उससे कुछ छोटे जिनमें सात हजार प्रत्येक में नहीं तो कम से कम सात सौ घर वाले तो बैठ सकें, इतने तो अवश्य होंगे, इस प्रकार कुल मिला कर, २० तो उपाश्रय और उनमें बैठने वाले ७००० श्रावकों के घर नवलखा
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