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[ २४३ ] लिया इत्यादि।" यदि इन गर्हित झूठी बातों का प्रचार करने वालो इस पुस्तक का नाम ऐतिहासिक नोंध न होकर "गप्प नोंध" अथवा "विष वमन नोंध" होता तो इसकी आभ्यान्तर आकृति के अनुरूप होता ? क्योंकि ऐसी घृणित पुस्तकों से तो उभय समाज में पारस्परिक वैमनस्य की ही वृद्धि होती है अतएव उपयुक्त हमारा कल्पित नाम ही इस पुस्तक के “यथा नाम तथा गुणः" के अनुसार ही युक्तियुक्त है ।
यह एक न्यायसंगत बात है कि जब एक पक्ष की ओर से ऐसा कोई अनुचित आक्षेप दूसरे पक्ष वालों पर पुस्तकों में प्रकाशित किया जाय तब वह पक्ष “मौन स्वीकृति लक्षणम्" के अनुसार चुपचाप नहीं बैठ सकता है। क्योंकि मिथ्या आक्षेपों का प्रत्युत्तर न देने से अपरिचित जन उन्हें उसी तरह का समझ लेते हैं । बस, इसी को लक्ष्य में रख श्रीमान् ऋषभचंद उजमचंद कोठारी पल्हणपुरवालों ने वि०सं० १९६६ में "साधु मार्गियों की सत्यता पर कुठार" नाम की पुस्तक लिख शाह के मिथ्या
आक्षेपों का बड़ी सभ्यता और युक्तियुक्त प्रमाणों से प्रत्युत्तर दिया था कि शाह अपना निःसार जीवन में इस विषय का एक शब्द तक भी उच्चारण नहीं कर सका । किन्तु स्थानकवासियों को यह कब अच्छा लगा कि जैन जगत् शान्त भाव और समाधि पूर्वक अपनी श्रात्मोन्नति में दत्तचित्त रहे । जब 'कुठार' के प्रकाशन से इनकी मिथ्या सत्यता पर पूर्ण प्रकाश पड़ने लगा तब इन्हें फिर विरोध की सूझी और वर्षों से दबी कलहाग्नि को अंड बंड प्रकाशन से पुनः प्रचलित कर शान्त
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