SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ सुंदर बुद्धि विमासई घणुं, रुडउं विचारिडं तु हुइ आपणुं, जिनवाणी जे बहू अवगणई, तेहनई पात्र मूरख वली भणईं. २० पडावश्यक जे जिनवरि भण्या, एहेते सघळां अवगण्यां, अणुव्रत सामाइक उच्चार, पोषंध प्रतिमा नहीं विवहार. २१ थापईं जीव दयामइ धर्म्म, सूक्षम बादर न लहई मर्म, सन्नि असनी जे आतमा, एकेंद्री पंचेंद्री किम होवे समा. २२ भव्य अभव्य जे हवइ, वीतराग दलवा डंसवइ, खांडर पीसई छेदई सदा, प्राशुक विधि नवि मानई कदा. २३ पूजा टालई हिंसा भणी, सवरिं भीते हुं घणी, २४ सर्वादरि मांडई व्यवसाय, धन मेलई बहू करी उपाय. खत्र अखत्र थकी नवि वमइ, मन गमतू भोजन नित जिमइ, ते मनि मानेइ तेहजि सही, धर्म्मध्यानथी वात जि रही. २५ नीसा साड चका दिई घृणा, परनिंदानी नही कांइ मणा, राग दोस वे महुवडि करिया, क्रोधादि किम दिछई परिवरिया, २६ टींटहुडी ऊंच पग करइ, आभ पडतां ठाढण धरइ, तिम जाणई अम्हे तारक अछु, पात्रपणुं सवलइ अम्ह पहुं. २७ नवा वेष नवला आचार, भणई गुणई विण शौचाचार, झान विराधई मूरखपणई, जाण शिरोमणि तेहनई भणई. २८ लाभ छेहा नवि जाणई भेउ, उत्सर्ग अपवाद न मानहं बेउ, निश्चय नहं व्यवहार जि किसिउ, स्वामी बोल न बो... उ. २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy