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________________ बि मारग आवश्यक ठामि, धुरि सुश्रामण(सुविहित)सुश्रावक नामि, संविग्नपाक्षिक त्रीजा जोइ, मुनिवर पूजा भाव जि होइ. ४१ पंच महाव्रत आदिइं जाणि, दशविध यतिनुं धर्म वखाणि, माव द्रव्य पूजा व्रत बार, धुरि समकित श्रावय कुलि सार. ४२ राय प्रदेसी केसी पासि, जिनमत जाणिउं मन उल्लासि, पुहुतई आयु दिवंगत भयु, मरिआम नामिई सुर थयु. ४३ सतरभेदि जिन पूजा करि, आविउ वीर पासे संचरी, चउद सहस मुनिवर मनि घरं, देव कहुं तु नाटक करूं. धन० ४४ वीर न बोले अनुमति हुइ, तु तिणि परि मंडी जूजूइ, पहिरियां सुर सरिखा सिणगार, पय घमघम घुघर घमकार. ४५ दुंदुभि गयणंगणि गडगडी, सरमंडल भूगल दउ दडी, धप मप धो धो मद्दल साद, आलविउ तिणइं अनुपम नाद.४६ नवल छंदि नवि चुकु ताल, रंज्या इंद्र चंद्र भूपाल, तव जिन वीर मौन परिहरइ, साते पदे प्रशंसा करइ. ४७ द्रव्य पूजानी जाणे सही, ऋषिने अनुमति देवी कही, ए अक्षर बोल्या छे किहां, जोयो रायपसेणी जिहां. ४८ कुसुमादिक लेइ मनरंगि, सतरे भेदे छठइ अंगि, दोमइ सयंवर मंडप ठाणि, जिन पूज्या मोटे मंडाणि. ४९ जीवाभिगम मांहि छे तथा, विजयदेव पूजानी कथा, जिनपूजा ऊथापि जिहां, रे कुमति ते अक्षर किहां? ५० तीरथ अष्टापद गिरनार, नंदीसर शत्रुजय सार, भगवइ अंगि कह्या छे वली, कइ मुनिवर कइ जिन केवली.५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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