SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में यति सुमतिविजय के पास वि. सं. १५०९ में यति दीक्षा ली बाद अहमदाबाद चातुर्मास किया और वहाँ का श्री संघ आपका निस्कार कर उपाश्रय से निकाल दिया अर्थात् वे स्वयं उपाश्रय से निकल गये इत्यादि आगे स्था० पूज्य अमोलखऋषिजी ने अपना अलग हो मत बतलाया उन्होंने लिखा है कि १५२ श्रादमियों के.साथ मुंहपर मुंहपत्ती बांधकर लौंमाशाह ने दीक्षा ली । पाठक स्वयं निश्चय करलें कि स्थानकमागियों के किस किस लेखकों के लेख से लौकाशाह का चरित्र प्रमाणिक माना जाय । . . . प्रस्तुत पुस्तक के लेखक महोदय ने सभी लेखों की प्रमाण पूर्वक अच्छी आलोचना करके सत्य वस्तु को प्रदर्शित को है यह बात पाठकों को इस पुस्तक के पढ़ने से अच्छी तरह विदित हो जायगी। साथ ही यह भी मालूम हो जायगा कि वास्तव में इन लोगों के पास लौकाशाह का प्रमाणिक चरित्र है ही नहीं जो कुछ लिखा है वे सब अपनी२ कल्पनाओं के आधार पर लिखा है। ___ इस पुस्तक के साथ ही एक “ऐतिहासिक नोंध की ऐतिहासिकता" नामक पुस्तक भी दृष्टि गोचर हो रही है उसे पढ़ने से ज्ञात होता कि मुनिश्री ने स्थानकमार्गी मत के ऊपर काफी प्रकाश डाला है । इससे यह भी सिद्ध हो जायगा कि वा० मो. शाइने दुनिया की आंखों पर असत्य का पर्दा डालना चाहा था परन्तु लेखक महोदय ने संसार के सामने उसकी प्रमाण पूर्वक श्रालोचना करते हुए सत्य वस्तु रख दी है । इससे मोली जनता जिनको कि इतिहास का विशेष बोध नहीं है वे भी सरलता से तमाम बातों को अच्छी तरह समझ जायेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy