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________________ १७३ क्या० स्था० लौं• अनु० है इतना ही नहीं पर वे तो मूर्तिपूजा को मानने वालों की उल्टी भरपेट निन्दा करते हैं। (३) लौकाशाह के अनुयायी सामायिक, प्रतिक्रमण आदि क्रिया करते समय स्थापनाजी रखते हैं, किन्तु स्थानकमार्गी लोग बिना स्थापना के, बिना आदेश के ही क्रिया कर लेते हैं। (४) लौंकागच्छीय लोग अपने मत के प्रारंभ से आज सक भी मुंह पर डोरा डाल मुँहपत्ती नहीं बांधते हैं, अपितु बाँधनेवालों का घोर विरोध करते हैं और स्थानकमार्गी लोग दिन भर मुंहपर मुंहपत्ती बाँधते हैं। (५) लौकागच्छीय यति स्थानान्तर करते समय अथवा गमनाऽऽगमन समय हाथ में डंडा और कंधे पर कमली रखते हैं। तब स्थानकमार्गी लोग कुछ नहीं रखते, किंतु रखने वालों को बुरा बताते हैं। (६) लौंकाशाह के अनुयायी गोचरी की झोली हाथ की कलाई पर रखते हैं और जीव रक्षा के निमित्त झोली पर पडिलह भी रखते हैं, तथा पात्रों में आया हुआ आहार गृहस्थों को दिखाते नहीं हैं । इनसे विरुद्ध स्थानकमार्गी गोचरी की झोली लटकती हुई हाथ में रखते हैं और उन पर ढकने को पडिलह आदि कुछ नहीं रखते। तथा आहार पूरित पात्रे कन्दोई की दूकान की तरह गृहस्थों के घर में इधर उधर फैला कर रखते हैं। जिनसे तन्निविष्ट आहार को गृहस्थ देख लेते हैं। कभी कभी तो यहाँ तक हो जाता है कि गृहस्थ के घर के नादान और अबोध बच्चे पात्र स्थित लड्डुओं को देख उनके लिए मचल बैठते हैं। ऐसी हालत में बच्चों के रोने का पाप उन्हें लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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