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________________ १६७ लौकाशाह का देहान्त धार है। यह लिखने का स्वामीजो का शायद यह अभिप्राय हो कि ऐसी २ निन्दित बातें लिखने से लौकामत या स्थानक मार्गियों के पारस्परिक सम्बन्ध में विभिन्नता आजाय, और वे एक दूसरे को देख हलाहल विष उगलने लगें। तथा अपने २ सम्प्रदाय से निकलने नहीं पावें। परन्तु स्वामीजी को यह स्मरण रहे कि, अब वह जमाना नहीं है, लोग लिख पढ़ कर, अाजकल स्वयं अपने हिताऽहित को सोचते हैं। वे ऐसी प्रमाणशून्य तथा असंभव बातों पर सहसा विश्वास नहीं करेंगे । आज तो हरेक बात के लिए सर्व प्रथम प्रमाण देने की जरूरत है। कल्पित बातों को मानकर वे स्व पर का अहित नहीं करना चाहते, वे तो अपनी बुद्धि गम्य बातों पर ही श्रद्धा रखते हैं । ___स्वामी अमोलखर्षिजी के मताऽनुसार लौकाशाह ने अन्तिम समय में अनशन कर प्राण छोड़ने चाहे किन्तु जब १५ दिन में भी उनके प्राण नहीं निकले तब दुःखी हो उसने जहर मंगवा कर खा लिया और सदा के लिए सांसारिक दुःखों से छुट्टी ली हो तो, स्वामी मणिलालजी का कहना स्थानकमार्गी लोग ठीक मान सकते हैं। क्योंकि जैन शास्त्रों में तो बिना अतिशय ज्ञानी के न तो कोई संथारा कर सके और न किसी अन्य को भी करा सके, किन्तु लौकाशाह ने इस ज्ञान से अनभिज्ञ होते हुए भी अनशन किया, इसी से उनकी यह दशा हुई हो तो कोई बड़ी बात नहीं है । ऐसा उदाहरण एक रतलाम में भी बना था, वहाँ एक स्थानकमार्गी ने संथारा किया, अनन्तर वह क्षुधा पीड़ित हो रात्रि में एक दम चुपचाप वहाँ से चल पड़ा। अनन्तर उसके बदले में खास साधु धर्मदासजी को आत्म बलिदान देना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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