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________________ लौकाशाह का देहान्त मणिलालजी के मताऽनुसार जहर के प्रयोग से ही उनका देहान्त हुआ होता तो अमोलखर्षिजी उन्हें समाधि मरण कैसे लिखते ? कारण, जहर खाकर मरनेवालों को समाधिमरण नहीं पर प्रात्म घात के कारण बालमरण कह सकते हैं । यदि स्वामी मणिलालजी जहर का अर्थ उत्सूत्र रूप जहर कर दें तो दोनों का समा. धान हो सकता है। कारण लौकाशाह उत्सूत्र भाषी था और उत्सूत्र सहित मरना जहर खाकर मरने से भी अधिक भयङ्कर है। _ अद्यावधि लोकाशाह के जीवन वृत्त विषय में जितने लेखकों ने लिखा है, उनमें यह किसी ने नहीं लिखा कि लौकाशाह जहर खाकर मरा था। फिर एक मणिलालजी यह बात कहाँ से ढूँड लाए कि उनको जहर दिया गया। जब लौकाशाह ने यति दीक्षा ली, जयपुर गए आदि बातें कपोल कल्पित सिद्ध हैं तो उनका जहर खाना भी मिथ्या ही है । पर मणिलालजी का ऐसा लिखने का क्षुद्र आशय "उनको मूर्ति पूजकों ने जहर दिया था" यह सिद्ध करके मर्ति पूजकों को संसार में हेय बताने का है। यह दुर्बुद्धि मणिलालजी को ही पैदा हुई हो सो नहीं किन्तु वा० मो० शाह ने भी अपनी ऐतिहासिक नोंध में लिखा है कि चैत्यवासियों ने लौकाशाह के एक साधु को विष दिला दिया। - शायद मणिलालजी ने यह सोचा होगा कि जब वा० मो० शाह ने अपनी नोंध में साधु को विष प्रयोग का लिख दिया है तो मैं साधु को न लिखकर स्वयं लौकाशाह को ही विष देने का क्यों न लिख दूँ जिससे जनता पर चैत्यवासियों की नीचता की छाप तो पड़े । इससे उन्होंने लिख दिया कि "प्रति पक्षियों ने लौंकाशाह को जहर दे दिया और लौंकाशाह का शरीर छूट गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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