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लौं० अनु० की संख्या।
लोकाशाह अपनी जीविताऽवस्था में तो लीबड़ी से बाहिर कहीं नहीं गए, और न उन्होंने अपनी विशेष अनुयायी संख्या भी बढ़ाई। किन्तु जब वे मर गए तब उनके नाम से अन्याडन्य प्रान्तों में कुछ २ प्रचार हुअा। परन्तु इसमें लौकाशाह के मत की उसमता का कोई खास कारण नहीं था, अपितु यह भी जैन यतियों का ही प्रताप है कि वे अपना बिहार एकाध प्रांत छोड़ के नहीं करते थे जैसा कि आज भी कर रहे हैं, और जहाँ इन्होंने कोई प्रांत छोड़ा कि चट, वहाँ लौकाशाह वाले मनुष्य पहुँच जाते थे और उन्हें अपनी तरफ गाँठ लेते थे। लौंका मत, और तेरह-पन्थियों की आज जो कुछ भी संख्या बढ़ी हुई नजर भाती है, उसका कारण इनके मत को उपादेयता, वा इनका कोई उपदेश प्रचार श्रोदि नहीं किन्तु जैन यतियों के बिहार का अभाव ही है। और आज भी संवेग पक्षी प्राचार्य आदि एक ही प्रान्त में रह कर इन लौंका आदिकों के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं ।
आधुनिक स्थानकमार्गियों ने एक नई मर्दुमशुमारी कर अपनी संख्या, पाँच लाख की गिनती कर अखबारों और लेखादिकों में प्रकाशित कराई है। झूठ बोलना, गप्पें हॉकना आदि इनके मत का आदि से ही अटल सिद्धान्त रहा है । सरकारी मर्दुमशुमारीसे जैनों की संख्या १३००००० की बताई जाती है, जिनमें ६००००० तो दिगम्बरी, अपने को बताते हैं २००००० तेरह पन्थी, और अब आपके कथनाऽनुसार ५००००० स्थानकमार्गी, इस प्रकार १३००००० लाख की संख्या तो पूरी हो चुकी, जब श्वेताम्बरीय
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