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________________ ( १४ ) है । "क्रान्तिनो युगस्रष्टा" इसी सान्त्वना का द्वितीय संस्करण होगा। पर दुःख है कि इस द्वितिय संस्करण के होने पर भी यदि दैववश २-४ साधु और इस स्थानकवासी समाज में से निकल गए तो न जाने आपको फिर कौनसे उपाय का अवलम्बन करना पड़ेगा ? यह अभो भविष्य के गर्भ में ही अन्तर्निहित है। . ___ जब हमारे भाइयों को "धर्मप्राण लौकाशाह" की लेखमाला से सन्तोष नहीं हुआ है और वे अब क्रान्ति नोयुग स्रष्टा नामक पुस्तक छपाने को उतारू हुए हैं और विनाही प्रमाण कपोल कल्पित बातें लिख श्रीमान् लौकाशाह की हसी एवं किल्लये उड़ाने का मिथ्या प्रयत्न करे इस हालत में हमारा भी कर्तव्य है कि हम लौकाशाह के जीवन पर ऐतिहासिक साधनों द्वारा कुछ प्रकाश डाले क्योंकि आखिर लौकाशाह भी तो हमारे आचार्यों द्वारा बनाए हुए श्रावकों की सन्तान ही हैं । व्यर्थ ही में उन मृत आत्मा की हँसी उड़ानी किसके हृदय में नहीं खटकेगी ? अतएव इस विषयका गहरा अभ्यास कर श्रीमान् लौकाशाह के जीवन की भिन्न भिन्न विषय को लक्ष में रक्ख पचवीस प्रकरण लिखकर वास्तव में लोकाशाह कौन थे और आपने क्या किया था यह सब प्रमाणिक प्रमाणों द्वारास्पष्ट बतला दिया है उम्मेद है कि इसके पढ़ने से उभय समाज को संतोष होगा और भविष्य में इस विषय के लिये उभय समाज की शक्ति समय और द्रव्य का व्यर्थ ही में बलोदान न होगा। इस प्रकार हार्दिक शुभभावना से प्रेरित हो मेने यह प्रयत्न किया है, न कि किसी के दिल को दुःखाने को या किसी को इससे हलका दिखाने को और यह बात इस किताब के पढ़ने मात्र से पाठकवर्ग स्वयं समझ सकेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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