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प्रकरण पन्द्रहवाँ
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केवल लौकाशाह का सम्बन्ध होने से मैंने खास लौंकागच्छीय और विशेष स्थानकवासी विद्वानों की सम्मति देकर यह सिद्ध कर दिया है कि लौकाशाह और लौंकाशाह के अनुयायी विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी तक तो किसी ने भी डोराडाल मुँहपर मुँहपक्षी नहीं बान्धी थी प्रत्युत सब लोग हाथ में ही मुँहपत्ती रखते थे। मुँहपत्ती तो स्वामिलवजी ने वि० सं १७०८ के आस पास मुँह पर बांधी थी जिसको खास लौंकागच्छीय विद्वान् कुलिंग और मिथ्या प्रवृति घोषित करदी थी और आज भी कर रहे हैं आगे के प्रकरण में लोकाशाह की विद्वता को भी पढ़ लीजिये ।
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