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________________ १२३ कोकाशाह और मुंहपत्ती वासी साधुओं का उदाहरण आपके सामने विद्यमान हैं कि इन महानुभावों ने घोले दिन और श्रम मैदान में मुँह बान्धना मिध्या सिद्ध कर डोरा को स्वयं तोड़ा और हजारों को तोड़ा के शुद्ध मार्ग में लाये इस किताब का लेखक भी इसी पंक्तिका है। कागच्छीय और स्थानकवासी विद्वानों का मत हम ऊपर लिख श्रये हैं कि डोरा डाल मुँहपर मुँहपती स्वामी लवजी ने सबसे पहले बान्धी थी। आगे हमारे स्वामी अमोलखर्षिजी की कल्पना लोकाशाह तक की है पर स्था० पूज्य हुकमीचन्दजी की समुदाय वाले जो कि वे लोग कहते थे कि डोराडाल मुँहपत्ती मुँहपर दिन रात बान्धना सूत्रों में तो नहीं लिखा है पर हमारा उपभोग नहीं रहता है इसीलिये डोराडाल मुँहपत्ती मुँहपर बान्धी है । आज उनके ही अनुयायी भगवान् ऋषभदेव और तीर्थंकर महावीर के मुँहपर डोराडाल मुँहपती बान्धने के कल्पित चित्र बना के अपनी पुस्तकों में मुद्रित करवाने में भी नहीं चूके हैं। वे भी इतना भहा चित्र की तीर्थकरों का शरीर एक स्कन्धा पर वस्त्र के सिवाय नग्न बनाके मुँहपर डोरावाली मुँहपती बन्धवादी है शायद आपका इरादा ऐसा होगा कि श्वेताम्बरों के अलावा दिगम्बरों को भी मुँह बन्धवादें कारण तीर्थकर डोराडाल मुँहपती मुँइपर बान्धते थे तो वे और दिगम्बर सब को मुँहपर डोराडाल दिन रात मुँहपत्ती बान्धनी चाहिये ? पर दुःख इस बात का है कि श्वे० दि० तो क्या पर इस कुकृत्य और मिथ्या प्ररूपना का स्थानकवासी समाज ने भी जोरों के साथ विरोध किया है । क्योंकि वखमात्र नहीं रखने वाले दिगम्बर हाथ में मुँहपसी रखने वाले श्वेताम्बर तथा लौकागच्छीय, और मुँहपर मुँहपत्ती 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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