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कोकाशाह का सिद्धान्त
भ्रष्ट होगई जैसे गोसाला को लीजिए, क्या वह सर्वज्ञ तीर्थङ्कर था ? परन्तु आवेश में उसने स्वयं को सर्वज्ञ तीर्थङ्कर घोषित किया । क्या जमाली केवली होगया था ? नहीं, पर वह अपने को केवली कहलाने लगा । इसी प्रकार जब लौंकाशाह उपाश्रय में गया और वहाँ उसका अपमान हुआ तो वह क्रुद्ध हो बाहिर आ के बैठगया बैठते ही तत्क्षण "मर्कस्य सुरामानं मध्ये वृश्चिक दंशनम् तन्मध्येझत सभ्वारः यद्वातद्वा भविष्यति” इस न्याय के अनुसार उसे सैयद का संयोग मिल गया उसने सीधी उल्टी पट्टी पढ़ा उसे जैन धर्म के खिलाफ़ कर दिया, इधर भस्मग्रह की अंतिम फटकार, भी संघ की राशि पर धूम्रकेतु का श्राक्रमण, असंयति पूजा अच्छेरा का प्रभाव, इत्यादि निमित्त कारणों ने लौंकाशाह को आग बबूला बना दिया और यह अनर्थ करा दिया हो तो विस्मय की बात नहीं । श्रथवा जिस समय लौकाशाह कोध में था, और सैयद के दुरूपदेश का असर उस पर चढ़ा हुआ था, उस समय शायद किसी ने लौकाशाह को कहा होगा कि :
चलो लौकाशाह ! सामायिक करें । जात्रो हम नहीं मानते सामायिक ।
चलो लकशाह ! पोसह करें। जाओ हम नहीं मानते पौसह को ।
चलो लौंकाशाह ! पडिक्कमण करें ? जाओ हम नहीं मानते पडिक्कमणि को ।
लौकाशाह ! कुछ पश्चक्खांण तो करो ? जाओ हम नहीं
मानते पच्चक्खाण को ।
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