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________________ काशाह का सिद्धान्त इस लेख से पाया जाता है कि लौंकाशाह सामायिकादि क्रियाओं को नहीं मानता था जभी तो खास लौंकाशाह के अनुयायी ने ऐसा लिखा है । ९०१ इस से आगे चल कर लौंकाशाह के पश्चात् करीब ३०-४० वर्षों में ही लागच्छीय भानुचंद्र नाम का यति हुआ, उसके समय में लौकाशाह के मूल सिद्धान्तों में कुछ कुछ परिवर्तन अवश्य हुआ। फिर भी लौंका के प्रतिपक्षी लोग तो उन्हीं मूल सिद्धान्तों को आगे रख कर कहते थे कि लौंकाशाह सामा० पो० प्रति० 10 प्रत्या० दान० और देव पूजा को नहीं मानता था । इनके उत्तर में भानुचंद्र ने अपने समय के लौंकामत के सिद्धान्तों को निम्नप्रकार से अपने हाथों लिखा है: "सामायिक टालई बो बार, पर्व परे पोसह परिहार | vashaj far वरतन करई, पञ्चरकाणई किम आगार धरई ॥ टालई असंयती नई दान, भाव पूजा भी रुडउ ज्ञान ॥ सूत्र बत्तीस सांचा सदह्या, समता भावे साधु लता । सिरि लौका नुं साचो धरम, भ्रमे पड़ीया न लहइ मर्म ॥ निंद कुमति कर हठवाद, बींछी करडयो कपि उन्माद । दयाधरम चौपाई वि० सं० १५७८ " इन चौपाइयों से यह ध्वनि निकलती है कि लोकाशाह सामा पौषह प्रति प्रत्या. दान और देव पूजा, साधु तथा जैनागम आदि कुछ भी नहीं मानता था । पर ये तो जिन शासन की मूल क्रियाएँ हैं, इनके विना मत या पन्थ नहीं चल सकता, इसी कारण यदि लौंकाशाह ने अपने अन्तिम समय · - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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