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________________ प्रकरण बारहवा - है। न तो उसपर किसी का आधार और विश्वास रहता है, और न वह इतना उपकार ही कर सकती है। नदी का पानी हमेशा के लिये रहता है, तब उकेरियों का पानी स्वल्प समय में ही सूख जाता है । बाद में धूल, मिट्टी, कचरा; पड़कर वह नष्ट हो जाती है । नदी में कूड़ा कचरा भी सब बह जाता है और उसका पानी सदा स्वच्छ रहता है । नदी के लिए सभ्य समाज को किसी प्रकार की घृणा या शंका नहीं रहती है। किन्तु उकेरियों के लिए वह खोदने वाले व्यक्ति का लक्ष्य कर सदा शंकाशील रहता है और विचार करने लगता है कि अमुक व्यक्ति मेरे समानधर्मी नहीं है । नदी एक भी अनेकों का सुख पूर्वक निर्वाह कर सकती है। किन्तु उकेरियों अनेक होकर भी सब को सन्तोष शील नहीं कर सकती। उकेरिएँ खोदने वाले सब अपनी उकेरी के पानी को श्रेष्ठ और अन्य के पानी को हेय बताते हैं, इसी से संसार में राग, द्वेष और फूट का विष-वृक्ष-वपन होता है, और वह संसार को अवनति के गहरे गर्त में पहुंचा देता है । पर नदी के लिए कभी कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा। क्योंकि नदी का पानी सर्वत्र सरस और स्वच्छ ही होता है । फिर भी यदि दुराग्रह बश नदी के किनारे यदि उकेरिये खोदी जाये तो इन से नदी को न तो विशेष हानि है और न उसकी महिमा में ही कोई कमी आती है, किन्तु भद्रार्थी जनता को भ्रम में डाल कर अपने साथ उनका भी अहित किया जा सकता है । अतएव धारा प्रवाही नदी के किनारे प्रथम तो उकेरिये न खोदना ही अच्छा है, यदि खोदे ही तो फिर पूर्वोक्त दो कारणों में से एकाध कारण का होना जरूरी है। अस्तु, जिनशासन रूपी जो धारा प्रवाही नदी बहरही है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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