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प्रकरण ग्यारहवाँ
होती है, उसने तो शैयद के बहकाने में आकर केवल हिंसा २ की पुकार उठाली होगी ? नहीं तो क्या मंदिरों के नाम पर भैंसे बकरे काटे जाते थे ? या मनुष्य बलि दी जाती थी ? क्या किया जाता था ? कि लौकाशाह ने उसे बन्द करवाया।
प्रश्न:-नहीं जी ! ऐसा कौन कहते हैं, हमतो यह कहते हैं कि उस समय मंदिर के लिए पत्थर, पानी, चूना, तथा मूर्ति पूजा के लिए जल, चन्दन, फल, फूल, धूप आदि की प्रक्रिया में जो जीव हिंसा होती थी उसी को ही लोकाशाह ने बन्द कराया। ____ उत्तरः- यह तो खूब हुआ, भगवान महावीर के समवसरण के समय लोकाशाह विद्यमान ही नहीं था, यदि होता तो, समवसरण की रचना देख वह छाती फाड़ कर मरजाता और शायद जीवित रह जाता तो भी गौशाला के समान यह पुकारे बिना तो नहीं रहता कि अरे ! त्यागी, वीतराग पुरुषों को इतने प्रारंभ और
आडम्बर की आवश्यकता क्यों ? यदि उपदेश-व्याख्यान देना ही इष्ट है तो महारंभ पूर्वक समवसरण की क्या आवश्यकता है हायरे हाय ! इतना पानी छिड़काना, अरे इतने गाडों के गाडे भरे हुए जल थल में उत्पन्न हुए फूलों का बिछवाना यह क्यों किया जाता है इसके अतिरिक्त एक योजन ऊँचे से पुष्प बरसाने से अनेक वायु काय के जीवों की विराधना होती है । अरे ! प्रभो ! अनिकाय का श्रारम्भ ये धूप वत्तिऐं व्याख्यान में क्यों ? हाय ! पाप, हाय ! हिंसा, अरे ! भगवन् ! ये आपके भक्त इन्द्रादि देव तीन ज्ञान संयुक्त सम्यग दृष्टि अल्प-परिमित संसारी महाविवेकी, धर्म के नाम पर आपके सामने घोर हिंसा करते हैं, और आप बैठे २ देखते हो, पर इनको कुछ कहते नहीं हो ? इतना ही नहीं पर
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